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________________ १४८ अहिंसा : व्यक्ति और समाज महावीर ने कर्मवाद की सबसे अधिक व्याख्या की है। उनका कर्म. वाद इस बात का समर्थन नहीं करता कि गरीब-गरीब ही रहेगा और उसे अपना कर्मफल भोगने के लिए अमीरों के द्वारा किए गए शोषण को सहन करना पड़ेगा। गरीबी और अमीरी सामाजिक अवस्थाएं हैं। इनका सम्बन्ध समाज की व्यवस्था से है, कर्मवाद से नहीं है। महावीर ने पुरुषार्थ का प्रतिपादन किया। उनके धर्म में आलस्य और अकर्मण्यता को कोई स्थान नहीं है । पुरुषार्थ के द्वारा कर्म के परिणामों में भारी परिवर्तन किया जा सकता है। महावीर ने अहिंसा को सर्वोच्च धार्मिक मूल्य दिया। उनका सूत्र है-अहिंसा धर्म है, धर्म के लिए हिंसा नहीं की जा सकती। धर्म की रक्षा अहिंसा से होती है, धर्म की रक्षा के लिए हिंसा नहीं की जा सकती। महावीर ने घोषणा की-मनुष्य जाति एक है । जातीय भेदभाव, घृणा और छुआछूत-ये हिंसा के तत्त्व हैं । अहिंसा धर्म में इनके लिए कोई अवकाश नहीं है। ___ महावीर ने धर्म के तीन लक्षण बतलाए-अहिंसा, संयम और तप । ये तीनों आत्मिक और वैयक्तिक हैं। इनसे फलित होने वाला चरित्र नैतिक होता है। राग-द्वेषमुक्त चेतना अहिंसा है। यह धर्म का आध्यात्मिक स्वरूप है । जीव की हिंसा नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, परिग्रह नहीं रखना—यह धर्म का नैतिक स्वरूप है। रागद्वेष-मुक्त चेतना आत्मिक स्वरूप ही है । वह किसी दूसरे के प्रति नहीं है और उनका सम्बन्ध किसी दूसरे से नहीं है। जीव की हिंसा नहीं करना यह दूसरों के प्रति आचरण है। इसलिए यह नैतिक है । नैतिक नियम धर्म के आध्यात्मिक स्वरूप से ही फलित होता है। इसका उद्गम धर्म का आध्यात्मिक स्वरूप ही है । इसलिए यह धर्म से भिन्न नहीं हो सकता । हर्बर्ट स्पेन्सर और थॉमस हक्सले तथा आधुनिक प्रकृतिवादी और मानवतावादी चिंतकों ने धर्म और नैतिकता को पृथक् स्थापित किया है। यह संगत नहीं है । जो आचरण धर्म की दृष्टि से सही है, वह नैतिकता की दृष्टि से गलत नहीं हो सकता। धर्म अपने में और नैतिकता दूसरों के प्रति-इन दोनों में यही अन्तर है । किन्तु इन में इतनी दूरी नहीं है, जिससे एक ही आचरण को धर्म का समर्थन और नैतिकता का विरोध प्राप्त हो । समाजशास्त्रियों ने धर्म और नैतिकता के भेद का निष्कर्ष स्मृति-धर्म के आधार पर निकाला। उस धर्म को सामने रखकर धर्म और नैतिकता में दूरी प्रदर्शित की जा सकती है, धर्म के द्वारा समर्थित आचरण को नैतिकता का विरोध प्राप्त हो सकता है। वह धर्म रूढ़िवाद का समर्थक होकर समाज की गतिशीलता का अवरोध बन सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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