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________________ व्यक्ति और समाज १४६ धर्म का आध्यात्मिक स्वरूप आत्म-केन्द्रित और उसका नैतिक स्वरूप समाजव्यापी है । इस प्रकार धर्म दो आयामों में फैला हुआ है । इस धर्म के दोनों रूप शाश्वत सत्य पर आधारित होने के कारण अपरिवर्तनीय हैं। स्मृति-धर्म (समाज की आचार-संहिता) देशकाल की उपयोगिता पर आधारित है। इसलिए यह परिवर्तनशील है। इस परिवर्तनशील धर्म की अपरिवर्तनशील धर्म के रूप में स्थापना और स्वीकृति होने के कारण ही धर्म के नाम पर समाज में बुराइयां उत्पन्न हुईं, जिनकी चर्चा समाजशास्त्रियों ने की स्मृति-धर्म ने अर्थ के अर्जन और भोग का दिशा-निर्देश दिया है, काम-सेवन की दिशाएं भी प्रदर्शित की हैं । यह दिशा-निर्देश करना स्मृतिधर्म का ही काम है । शाश्वत धर्म का यह काम नहीं है । उसके द्वारा यदि काम और अर्थ की परिवर्तनशील व्यवस्था का दिशा-निर्देश हो तो वह शाश्वत का रूप लेकर समाज की भावी व्यवस्थाओं में गतिरोध पैदा कर देता है, जैसा कि आज हो रहा है । स्मृति-धर्म द्वारा प्रतिपादित काम और अर्थ की व्यवस्था में शाश्वत धर्म का सहयोग हो सकता है। महावीर ने यह सहयोग किया था। उन्होंने गृहस्थों की धर्म-संहिता (या नैतिक संहिता) में जो नियम निश्चित किए, उनसे समाज-व्यवस्था को भी बहुत सहारा मिला । उदाहरणस्वरूप इन नियमों का निर्देश किया जा सकता है १. अपने कर्मक रों की आजीविका का विच्छेद न करना । २. पशुओं पर अधिक भार न लादना । ३. झूठी साक्षी न देना। ४. अपनी विवाहित स्त्री के अतिरिक्त किसी के साथ अब्रह्मचर्य का सेवन न करना। ५. संग्रह की एक निश्चित सीमा करना । उस सीमा से अतिरिक्त __ संग्रह न करना । ६. धन-संग्रह और भोगवृद्धि के लिए दूसरे देशों में न जाना, आदि आदि। __ महावीर ने अर्थार्जन और काम-सेवन में होने वाली आसक्ति को कम करने का विधान किया। किन्तु उनके उपभोग का विधान नहीं किया। उन्होंने धर्माचार्य की सीमा का काम किया, किन्तु समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री और कामशास्त्री की सीमा का काम नहीं किया। इस अर्थ में यदि कोई उनके दर्शन को अपूर्ण माने तो माना जा सकता है। उनके अनुयायी को दूसरी व्यवस्थाओं पर निर्भर होना पड़ता है यदि कोई यह आरोप लगाए तो लगाया जा सकता है। शाश्वत धर्म की यह अपूर्णता और पर-निर्भरता न हो तो स्मृति-धर्म शाश्वत के स्वरूप को ही धुंधला कर देगा। पूर्णता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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