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एटमी युद्ध टालने की दिशा में पहला प्रयास
१३६ ही कर सकता है । घोषणा-पत्र के कुछ कार्यक्रम अविलम्ब लागू हो गए। कुछ कार्यक्रम अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों से संबंधित थे। उनकी क्रियान्विति के लिए अनुकल समय की अपेक्षा थी और सम्बन्धित देशों के नेताओं की सहमति भी आवश्यक थी। इस दृष्टि से काम वहीं तक रुका नहीं । अहिंसा की दिशा में कदम आगे बढ़े और असंभव सम्भव हो गया। दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण समझौता हो गया। यह समझौता हुआ उन दो महाशक्तियों में, जिनके संतुलन पर पूरे विश्व का संतुलन टिका हुआ है।
पिछली दो बार की असफल वार्ताओं के दौर ने दोनों राष्ट्रों के नेताओं को हतोत्साह नहीं किया। 'तीजे लोग पतीजे' इस कहावत के अनुसार सोवियत
और अमेरिका की तीसरी शिखर वार्ता पूरी तरह से सफल हो गई। इस वार्ता में पांच सौ से पांच हजार कि० मी० दूरी तक भूमि पर से मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों को नष्ट करने का प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। कहा जाता है कि प्रक्षेपास्त्र दोनों देशों के शस्त्रागार के महत्त्वपूर्ण हथियार हैं । इससे अगले समझौते में हथियारों के जखीरे को आधा कर देने की संभावना पुष्ट की जा रही है। यह समझोता सन् १९८८ के बसन्त में मास्को में करने की घोषणा 'व्हाइट हाउस' से की जा चुकी है।
गोर्बाचेव और रीगन के बीच हुए इस समझौते का दुनिया के प्रायः सभी देशों ने हार्दिक भाव से स्वागत किया है । कोई देश इसे सुखद भविष्य की शुरूआत बता रहा है, तो किसी की दृष्टि में यह यूरोप की सुरक्षा का सपना साकार हुआ है। चारों ओर से प्राप्त होने वाली बधाइयां इस बात की साक्षी हैं कि कोई भी व्यक्ति, वर्ग, समाज या राष्ट्र हिंसा नहीं चाहता । एटमी आयुध हिंसा के मूर्त प्रतीक हैं। इनसे भय, प्रतिशोध और प्रतिस्पर्धा के भाव जागते हैं । इन आयुधों के रहते हुए कोई भी निश्चिन्त होकर नहीं बैठ सकता। पड़ोसी या दुश्मन देशों के पास ऐसे आयुध हों तो किसी भी राष्ट्र के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है । उस चुनौती का मुकाबला करने के लिए वह शिक्षा, संस्कृति, मानवीय मूल्य आदि तत्त्वों को गौण कर अपनी सारी शक्ति सेना और शस्त्रों पर लगा देता है । इससे राष्ट्र के विकास में जो बाधाएं आती हैं, वे किसी से अज्ञात नहीं हैं।
अमेरिका आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न राष्ट्र है और रूस की शस्त्र-सम्पदा को अमेरिका से बेहतर माना जाता है। अमेरिका अपनी अर्थ-शक्ति के बल पर रूस की शस्त्र-शक्ति से आगे बढ़ जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य है इन दोनों महाशक्तियों द्वारा अपनी आणविक शक्तियों को नष्ट करने का फैसला । यह एक ऐसा फैसला हुआ है, जिसे बहुत वर्षों पहले हो जाना चाहिए था। पर 'जब जागे तभी सवेरा' अब भी दुनिया के बड़े-बड़े
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