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एटमी युद्ध टालने की दिशा में पहला प्रयास
८ दिसम्बर १९८७ का दिन विश्व इतिहास का महत्त्वपूर्ण दिन हो गया। इस दिन अमेरिका के 'व्हाइट हाउस' में सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव और अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने मध्यम दूरी के परमाणु प्रक्षेपास्त्र समाप्त करने की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए। दुनिया को एटमी युद्ध के खतरे से उबारने के लिए किए गए प्रयत्नों में यह प्रथम सफल प्रयत्न है । इससे पहले सन् १९८५ में जेनेवा में और सन् १९८६ में रिक्याविक में इस आशय की दो बैठकें हुई थीं, जो सफल नहीं हो सका ।
सन् १९८६ के नवम्बर महीने में गोर्बाचेव भारत आए थे। भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी से वे मिले। दोनों नेताओं ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और इस सदी के अन्त तक आणविक अस्त्रों को नष्ट करने की दृष्टि से बातचीत की और एक दस सूत्री घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। उस घोषणापत्र के कुछ सूत्र ये हैं
अहिंसा को सामाजिक जीवन का आधार माना जाए।
भय और सन्देह की जगह सद्भाव और विश्वास का वातावरण बनाया जाए ।
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का आधार बनाया जाए ।
• परमाणु हथियार मुक्त और अहिंसक विश्व बनाने के लिए तुरन्त ठोस कार्यवाही की जाए ।
इन सूत्र को पढ़ने से ऐसा नहीं लगता कि सोवियत और भारत के शीर्षस्थ नेताओं ने ऐसे सूत्र दिए हैं। इन सूत्रों में भगवान् महावीर की आत्मा बोल रही है, महात्मा गांधी की आत्मा बोल रही है। इस घोषणा पत्र के लिए हमने ५ नवम्बर १९८६ को अणुव्रत भवन में मिलने के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को साधुवाद दिया और उनके माध्यम से सोवियत नेता गोर्बाचेव तक हमारा साधुवाद पहुंचाने का संकेत किया। सोवियत नेता देर-सवेर अहिंसा के रास्ते पर आए, यह भारत के लिए भी गौरव की बात है । उस घोषणा-पत्र के संबंध में कुछ लोगों की यह प्रतिक्रिया थी कि अहिंसा और निःशस्त्रीकरण की बात करना सरल है, पर एक साम्यवादी राष्ट्र द्वारा उसकी स्वीकृति बहुत कठिन है ।
कौन-सा काम कठिन है और कौन-सा सरल ? इसका निर्णय तो समय
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