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________________ अणुबम नहीं : अणुव्रत चाहिए 'विज्ञान और तकनीकी विकास के कारण मनुष्य को संहार की भयानक शक्ति मिल गई है। पर प्रश्न यह है कि क्या उसमें मानव जाति को बचाने की भी समझदारी आई है ? आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती मानवता के प्रति निष्ठा और लगाव पैदा करने की है।' एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में भारत के प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के उक्त विचार इस बात के साक्षी हैं कि आज देश के चिन्तनशील और दायित्वशील लोगों को सबसे बड़ी चिन्ता मानवता को बचाने की है। यह एक प्रासंगिक और अपेक्षित चिन्ता है । आज मानवता को बचाने से अधिक कोई करणीय काम प्रतीत नहीं होता। मनुष्य औद्योगिक और यांत्रिक विकास कर पाए या नहीं, इनसे मानवता की कोई क्षति नहीं होने वाली है, किन्तु उसमें मानवीय गुणों का पर्याप्त विकास नहीं होता है तो कुछ भी नहीं होता है। एक मानवता बचेगी तो सब कुछ बचेगा । जब इसकी सुरक्षा नहीं हो पायी तो क्या बचेगा? और उस बचने का अर्थ भी क्या होगा ? मनुष्य एक सर्वाधिक शक्तिशाली प्राणी है, इस तथ्य को सभी धर्मों ने स्वीकार किया है। पर मानव जाति का दुर्भाग्य यह रहा कि उसकी शक्ति मानवता के विकास में खपने के स्थान पर उसके ह्रास में खुप रही है। मानवता की सुरक्षा के लिए जिस ऊर्जा को संगृहीत किया गया था, वह हथियार का रूप लेकर उसका संहार कर रही है। मनुष्य के मन की धरती पर उगी हुई करुणा की फसल क्रूरता से भावित होकर धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है । यह एक ऐसा भोगा हुआ यथार्थ है, जिसे कोई भी संवेदनशील व्यक्ति नकार नहीं सकता। पानी को जीवनदाता माना जाता है, सर्वोत्तम तत्त्व माना जाता है फिर भी उसके स्वभाव की विचित्रता यह है कि वह ढलान का स्थान प्राप्त होते ही नीचे की ओर बहने लगता है । दूसरों को जीवन देने वाला जल भी जब नीचे की ओर जाने लगे तो उसे कौन रोक सकता है ? यही स्थिति आज के मनुष्य की है । सर्वाधिक शक्तिशाली होकर भी वह स्वयं का दुश्मन हो जाए, करुणा को भूलकर क्रूर बन जाए तो उसे कौन समझा सकता भगवान् महावीर ने कहा है-'पुरिसा ! तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वं ति मन्नसि'-पुरुष जिसे हंतव्य मानता है, वह तू ही है, केवल तू ही। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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