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________________ युद्ध का समाधान : अहिंसा अहिंसा के द्वारा यदि हम प्रतिरोध की बात करते हैं तब वैसे ही प्रतिरोधात्मक अस्त्रों को ढूंढना होगा। गांधीजी ने इस क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आन्दोलन, सत्याग्रह, धरना आदि कुछ साधनों का प्रयोग किया था। आज भी इनका प्रयोग हमें यदा-कदा देखने-सुनने को मिलता है। किन्तु प्रतीत ऐसा होता है कि गांधीजी के समय इन अस्त्रों में जो प्रभाव था, वह आज नष्ट हो गया है । ऐसा क्यों हुआ? इसके उत्तर में मुझे ऐसा जंचता है कि आज इन प्रवृत्तियों की विशुद्धता विलुप्त हो गयी है। इन साधनों का प्रयोग करने वाले आज भी गांधी और उनके आदर्शों और उन आदर्शों को प्राप्त करने के साधनों का बखान करते हैं, किन्तु फिर भी आम जनता को उन साधनों की भूमिका में विशुद्धता नजर नहीं आती। मैंने पहले भी कहा था कि अहिंसात्मक प्रतिरोध में देश, काल और परिस्थिति का विचार करते हुए निर्णय होना चाहिए; बैसे ही इसके लिए आग्रहमुक्तता, तटस्थ और विनम्र दृष्टिकोण तथा आत्मोत्सर्ग का तीव्र भाव होना भी जरूरी है । इन सबके अभाव में इन साधनों की पवित्रता समाप्त हो जाती है और वे हतप्रभ हो जाते हैं। __मैं ऐसा मानता हूं कि अहिंसात्मक प्रतिरोध में अपने सहयोग का समाहरण हो सकता है। अपने असहयोग के द्वारा दूसरे व्यक्ति को बाध्य भी किया जा सकता है, किन्तु उसमें बलात्कार मान्य नहीं । बलात्कार स्वयं हिंसा है । अपने विचारों को मनवाने के लिए अपने सहयोग का समाहरण एक अलग बात है और उसके लिए प्रतिपक्ष को बलात् बाध्य किया जाए, यह एक अलग बात है । हम घेराव को ही लें । घेराव में हिंसात्मक उपकरण का आश्रय नहीं लिया जाता, यह ठीक है । फिर भी मैं इसे अहिंसा के साधन में नहीं ले सकता, क्योंकि इसमें आत्मोत्सर्ग की भावना विलुप्त है। प्रतिपक्ष को इसमें एक प्रकार से कैद कर लिया जाता है । अहिंसा में अपने उत्सर्ग से सामने वाले को बाध्य किया जा सकता है। अपनी शक्ति (समूह-शक्ति) से किसी को बाध्य किया जाना अहिंसा नहीं है । शक्ति का प्रयोग ही हिंसा है, फिर चाहे वह किसी भी प्रकार की क्यों न हो। इस प्रकार सविनय अवज्ञा आन्दोलन, सत्याग्रह, घेराव आदि साधनों की भूमिका में विशुद्धता, तटस्थ दृष्टिकोण, देश, काल और परिस्थितियों का सही विचार और आत्मोत्सर्ग की भावना निहित हो तो मैं समझता हूं, अहिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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