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________________ युद्ध का समाधान : अहिंसा को इन्हें स्वीकारने में संकोच नहीं है। वे आधार ही इन साधनों को सफल बनाने वाले हैं। इन आधारों की गौणता भी सफलता में संदेह उत्पन्न करती है। गांधीजी जब नमक का कानून तोड़ने के लिए दण्डी-यात्रा पर निकले, उन्होंने बहनों को उस सत्याग्रह में नहीं लिया। कस्तूरबा, मीठू बहन आदि को यह बहुत अखरा । उन्होंने गांधीजी से शिकायत के स्वर में कहा---आप जब स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा देने की बात करते हैं, फिर इस सत्याग्रह में हमें शरीक क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या आपको हमारी क्षमता और बलिदान की भावना में संदेह है ? यदि नहीं तो हमें आपको इस आन्दोलन में शरीक करना होगा। गांधीजी ने कहा-~-मुझे तुम लोगों की क्षमता और बलिदान की भावना में कोई संदेह नहीं है। फिर भी मैं तुम्हें इस आन्दोलन में नहीं ले रहा हूं, इसका दूसरा कारण है। तुम जानती हो, अंग्रेज एक सभ्य जाति है। वह कदाचित स्त्रियों पर हाथ न उठाए और स्त्रियों को देखकर हम लोगों पर भी अनुकम्पा कर दे। मैं नहीं चाहता कि इस कारण से लाठी-चार्ज या गोलीचार्ज न हो, क्योंकि हमारे साथ में महिलाएं हैं। दूसरे, इस आन्दोलन में महिलाओं के शामिल होने को अन्य लोग सहज ही हमारे बचाव के साधन के रूप में मानेंगे। मैं चाहता हूं, स्वयंसेवकों के बलिदान में कोई बाधा न आए और यह आन्दोलन कमजोर न बने, इसलिए मैं इस सत्याग्रह में महिलाओं को शामिल होने की अनुमति नहीं दे सकता हूं। इस उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा को किस भूमिका तक कौन-सी चीज मान्य है ? उस भूमिका के अभाव में वही साधन अमान्य हो सकता है । आज मुझे इस पवित्र भूमिका का अभाव नजर आता है। फिर कोई भी साधन समुचित कैसे ठहर सकता है ? प्रश्न साधनों का नहीं, भूमिका निर्माण का है। क्या अहिंसा युद्ध का समाधान बन सकती है ? युद्ध का समाधान असंदिग्ध रूप से अहिंसा ही है। हिंसा में कभी अन्त न होने वाली शस्त्र-परम्परा है । शस्त्र-परम्परा से कभी युद्ध का अन्त आ ही नहीं सकता। युद्ध का वास्तविक अन्त अहिंसा से ही संभव है। शक्ति-संतुलन के अभाव में बंद होने वाले युद्ध का अन्त नहीं होता। वह विराम दूसरे युद्ध के तैयारी के लिए होता है, शक्ति-संचय के लिए होता है। इसलिए ही तो आज की शान्ति का अर्थ है-दो युद्धों का वह मध्य-काल, जिसमें अग्रिम युद्ध के पूर्व तैयारी होती है। यह अहिंसा का सिद्धान्त पक्ष है कि युद्ध का वास्तविक समाधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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