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________________ युद्ध और अहिंसक प्रतिकार १३१ कार श्रेष्ठ है, पर प्रश्न यह है कि वह कैसे किया जाये ? मैं मानता हूंअनुशासन, अभय, प्रेम और मनोबल का विकास हो तो अहिंसक प्रतिकार करने में कोई कठिनाई नहीं होती । हमें जनता को इन तीन बातों से दीक्षित करना चाहिए कि वह आक्रमण का अहिंसक प्रतिरोध करने के लिए आक्रान्ता का सहयोग न करे, उसका शासन स्वीकार न करे और उसके अनुचित पग का विरोध करे । चौथी बात यह है कि जब तक आक्रान्ता अपने देश से लौट न जाये, तब तक इस प्रतिकार-पद्धति में शिथिलता न आने दें। यह प्रतिकार की पद्धति कभी विफल नहीं होगी। यह सही है कि आक्रान्ता के साथ असहयोग करने पर कष्ट झेलने पड़ते हैं, उसका शासन स्वीकार न करने पर यातनाएं सहनी पड़ती हैं, उसका विरोध करने पर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, किन्तु यह सब सहे जा सकते हैं जब अहिंसा जनता का आत्म-धर्म बनता है और उसकी आराधना के लिए वह अनुशासित, अभय, प्रेममय और मनोबली बनता है। महात्मा गांधी अहिंसा को धर्म मानते थे और कांग्रेस ने उसे नीति के रूप में स्वीकार किया था । महात्मा गांधी जन-मानस के प्रेरक थे और कांग्रेस ने शासन का भार संभाला। यही कारण है कि कांग्रेस सरकार ने शस्त्र-सज्जा को प्रोत्साहन दिया और अहिंसक प्रतिकार का मार्ग चुना। अहिंसा उसका धर्म होता तो ऐसा कभी नहीं होता पर वह उसकी नीति थी, इसलिए उसमें परिवर्तन हुआ। धर्म सर्वथा अपरिवर्तनीय होता है, नीति अपरिवर्तनीय नहीं होती। __ मेरे लिए अहिंसा नीति नहीं किन्तु आत्म-धर्म है। मैं उसे छोड़ कोई अन्य बात सोच ही नहीं सकता। हिंसा का समर्थन मेरे लिए सर्वथा असम्भव है। मैं भारतीय नागरिक को यही परामर्श दूंगा कि वह अहिंसा के प्रतिकार के लिए शक्ति-संचय करे और युद्ध के कगार पर खड़े हुए विश्व के सामने एक आलम्बन प्रस्तुत करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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