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________________ १३० अहिंसा : व्यक्ति और समाज शक्ति शस्त्र-सज्जा में होती है और अभय में भी। पराक्रम शरीर में भी होता है और मन में भी । जिन्हें यह भय होता है कि हमारा प्रदेश कहीं दूसरों के हाथ में चला न जाये, वे शस्त्र-शक्ति और शरीर-बल से आक्रमण को विफल करना चाहते हैं और जिन्हें किसी भी बात का भय नहीं होता है, जो केवल मानवीय एकता में अदम्य विश्वास रखते हैं, वे उसे विफल करना चाहते हैं अभय से और मनोबल से । आक्रमण दोनों के लिए असह्य है। पर प्रतिकार की पद्धतियां एक नहीं हैं । मौत से न डरे, यह सैनिक के लिए भी पहली शर्त है और अहिंसक के लिए भी। शस्त्र-सज्जित होना सैनिक की दूसरी शर्त है, किन्तु अहिंसक की नहीं । शरीर-बल का प्रयोग करना सैनिक की तीसरी शर्त है किन्तु अहिंसक की नहीं। अहिंसक प्रतिकार का मार्ग ____ जो आक्रमण का अहिंसक प्रतिकार करना चाहेगा१. वह अभय होगा, मौत से नहीं डरेगा। २. वह प्रेम से ओत-प्रोत होगा--मानवीय एकता में अटूट आस्था रखेगा। आक्रान्ता के प्रति मन में घृणा नहीं लायेगा। ३. वह मनोबली होगा-अन्याय से असहयोग करने की भावना को किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ेगा। अभय, प्रेम और मनोबल की दीक्षा से दीक्षित व्यक्ति आक्रमण को जिस तत्परता से विफल कर सकते हैं, उस तत्परता से उसे वे सैनिक विफल नहीं कर सकते, जो शस्त्र-सज्जित और शरीर-बल से समर्थ होते हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने इसी भाव से लिखा था-युद्ध में विजय संदिग्ध होती है और जनसंहार निश्चित । इसलिए जब तक दूसरे उपाय सम्भव हों, तब तक युद्ध न किया जाये। मैं इसे इस भाषा में सोचता हूं-युद्ध में विजय निश्चित हो, फिर भी वह न किया जाये। क्योंकि वह समस्या का समाधान नहीं । वैज्ञानिक युग का मनुष्य क्या वायुयान को छोड़ बैलगाड़ी में यात्रा करना पसन्द करेगा? आज का बुद्धिवादी मनुष्य विश्व-राज्य की कल्पना को छोड़ युद्ध करना पसन्द करेगा? युद्ध आज के विकसित मानव के सिर पर कलंक का टीका है। सचमुच इसे दफनाकर ही मनुष्य अपने-आपको बुद्धिवादी कहाने का अधिकारी जो लोग यह सोचते हैं कि आक्रमण प्रत्याक्रमण से ही विफल हो सकता है, उनका चिन्तन विकल्प-शून्य है। किन्तु अहिंसावादी का चिन्तन निर्विकल्प नहीं है । उसकी दृष्टि में प्रत्याक्रमण का विकल्प है, अहिंसक प्रतिकार। कुछ लोग यह मानते हैं-हिंसक प्रतिकार की अपेक्षा अहिंसक प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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