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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
के लिए अनेक युद्ध लड़े गये हैं किन्तु अब ऐसी मान्यताएं निरस्त होती जा रही हैं। सामाजिक जीवन में अहिंसा की प्राण-प्रतिष्ठा होने से ही विश्वशान्ति की बात आकार ले सकती है । अहिंसा शाश्वत सत्य है और आक्रमण आवेशमूलक मनःस्थिति की परिणति है। व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के प्रति होने वाली आक्रान्ता मनोवृत्तियां मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा में बाधक हैं। भूमि, संपत्ति आदि का अपहरण, अधिकार हनन आदि प्रवृत्तियों का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत गलत प्रभाव पड़ता है । भय, सन्देह, प्रतिशोध, आशंका सुरक्षा आदि कई कारण हैं जो मनुष्य को हिंसा की प्रेरणा देते हैं। राष्ट्रीय दायित्वों से प्रतिबद्ध व्यक्ति इन कारणों की उपेक्षा नहीं कर सकता, किन्तु अपनी-अपनी वृत्तियों का परिमार्जन कर इन समस्याओं को स्थायी समाधान दे सकता है। अपेक्षा इस बात की है कि समाधान के लिए उपयुक्त मानस का निर्माण हो । आक्रामक मनोवत्ति को बदलने के उपाय
मंत्री-भावना का अभ्यास आक्रान्ता मनोभावों का सीधा प्रतिकार है । वर्तमान युग में यह बहुत आवश्यक है। प्राचीन समय में आक्रमण शस्त्रीय होते थे। शस्त्र प्रयोग में बल-प्रयोग अवश्यंभावी है। आज विचारधारा और शासन पद्धति थोपने का प्रयत्न हो रहा है, यह आन्तरिक आक्रमण है। वर्तमान युग में विचारों का विकास बहुत हो चुका है। आज आक्रमण न करना ही पर्याप्त नहीं है । अनाक्रमण वृत्ति-निर्माण से आगे अपेक्षित है समन्वयमूलक मनोभाव, जिनका सृजन नैतिक धरातल पर ही हो सकता है।
पुराने समय में आवेश की क्रियान्विति युद्ध के रूप में होती थी। जिस देश में युद्ध के प्रसंग जितने अधिक उपस्थित होते थे, उस देश का शौर्य उतना ही अधिक विख्यात होता था। किन्तु मानवता की दृष्टि से यह उचित नहीं है । मानवीय दृष्टिकोण आवेश-शमन की प्रक्रिया प्रस्तुत करता है । संयुक्त राष्ट्र संघ समन्वय की पृष्ठभूमि के लिए प्रशस्त उपक्रम है। जिस नीति के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई, उस नीति को अमल में लाया गया तो राष्ट्र संघ अपना दायित्व निभाने में सक्षम हो सकेगा और अन्तर्राष्ट्रीय तनावमुक्ति का रास्ता निकल सकेगा। अन्तर्राष्ट्रीय तनाव का मुख्य कारण - मेरी दृष्टि में इसका मुख्य कारण है शस्त्र-निर्माण और शस्त्र-विकास । शस्त्र का निर्माण और विकास करने वाला राष्ट्र अभय बनता है, परन्तु शेष राष्ट्र उससे भयभीत हो जाते हैं । भय की प्रतिक्रियास्वरूप शस्त्र-निर्माण की दिशा में प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है। एक-दूसरे के प्रति भय और सन्देह की स्थिति शान्ति-भंग का मुख्य हेतु है । शस्त्रों से अभय बनने बाला राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को
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