SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्व-शान्ति की आचार-संहिता वर्तमान विश्व-चेतना की गतिशील साधना ने विश्व को बहुत छोटा कर दिया है। एक समय था जब एक प्रान्त की समस्याओं से दूसरा प्रान्त अप्रभावित रहता था। एक देश की स्थितियों का संक्रमण दूसरे देश में नहीं होता था । किन्तु आज आयात-निर्यात के साधन इतने विकसित हो गये हैं कि एक भूखंड की समस्या सम्पूर्ण विश्वगत हो जाती है । संक्रमणशीलता की स्थिति में कोई भी व्यक्ति, वर्ग या भूखंड अप्रभावित नहीं रह सकता । इसलिए अन्तराष्ट्रीय समस्याओं का विशेष स्थान है । अन्तर्राष्ट्रिीय सम्पर्क-सूत्रों और व्यवस्थाओं को देखते हुए हमें केवल राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान तक ही नहीं सोचना है । अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर जो-जो समस्याएं उभर रही हैं, उनके कारणों की खोज और निवारण की प्रशस्त प्रक्रिया जब तक प्राप्त नहीं होती है, विश्व-शान्ति की कल्पना यथार्थ की धरती पर आकार नहीं ले सकती। __ अणुव्रत दर्शन व्यक्ति-व्यक्ति को मार्गदर्शन देता है, उसी प्रकार समग्र विश्व-चेतना को भी पथ दिखलाता है । विश्व-चेतना को उबुद्ध करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस काम हो, यह आवश्यक है । इसके लिए नि:शस्त्रीकरण, सहअस्तित्व और सापेक्ष सहयोग-भावना को पल्लवित करना है। अणुव्रत के परिपार्श्व से ऐसी स्रोतस्विनियां बहेंगो, जो नैतिक मूल्यों की पौध को सिंचन देकर विश्व-मानस को नया आलोक और शान्ति देने में सक्षम हो सकेंगी। अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण, एक राष्ट्र की भूमि और संपत्ति पर अधिकार करने की मनोवृत्ति, आन्तरिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप, एक शासन-पद्धति पर दूसरी शासन-पद्धति का आरोपण करने का प्रयत्न, अपनी विचारधारा दूसरों पर थोपने का प्रयास आदि ऐसी अनेक स्थितियां हैं, जो अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को उभारने में निमित्त बनती हैं। उपनिवेशवाद अन्तर्राष्ट्रीय जगत् की सबसे बड़ी समस्या थी। आज लगभग सभी राष्ट्र इस समस्या से मुक्त हो गए है। इस समय परिस्थिति ऐसी निर्मित हो गयी है कि हर प्रबुद्ध व्यक्ति और राष्ट्र उपनिवेशवाद को उखाड़ने में सहमत है। आक्रामक मनोवृत्ति का जहां तक प्रश्न है, वह आज भी यत्र-तत्र दृष्टिगत हो रही है । पुराने समय में यह मनोवृत्ति मान्य थी। साम्राज्य-विस्तार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy