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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
उठाकर संहारक शस्त्रों का इतना जबरदस्त धंधा करते हैं कि गरीब देशों का तो कचूमर ही निकल जाता है । उनके सामने अपने अस्तित्व का सवाल रहता है, अत: गरीबी को ओढ़कर भी उन्हें शस्त्र खरीदने पड़ते हैं । यह सही है कि बड़े राष्ट्रों की वैज्ञानिक क्षमताओं ने उन्हें वह सामर्थ्य प्रदान किया है, पर इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि अविकसित राष्ट्र इससे बहुत तीव्रता से प्रभावित होते हैं । अभी-अभी इंडियन डिफेंस रिव्यू पत्रिका में प्रकाशित समाचारों के अनुसार केवल चीन ने १६८० और १६८७ के बीच में ८ अरब ७० करोड़ डालर के हथियार बेचे हैं ।
यह प्रसन्नता की बात है कि धीरे-धीरे पूरी दुनिया में युद्ध के विरुद्ध जनमत बन रहा है । अभी-अभी रूस और अमेरिका के बीच ३० प्रतिशत परमाणु प्रक्षेपास्त्रों व बमवर्षकों में कटौती करने के प्रस्ताव पर जो समझौता हुआ है वह भगवान् महावीर की इसी भावना को अभिव्यक्त करता है कि शस्त्र में स्पर्धा है । युद्ध आखिर समस्या का समाधान नहीं है । यह अनर्थ हिंसा है, निषेधक भाव है । जो आदमी इससे बच जाता है उसका चरण अपने आप विश्व शांति की ओर उठने लगता है ।
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