________________
युद्ध के कटु परिमाण
१२३ विकिरण के खतरों के अलावा यह भी आशंका है कि उससे धरती पर भयंकर शीत का प्रादुर्भाव होगा। धरती अंधकारपूर्ण तथा अत्यन्त शीतल ग्रह के रूप में परिणत हो जाएगी । समुद्र के पानी का स्तर भी बढ़ जाएगा, जिससे धरती का काफी भाग जलमग्न हो जाएगा। प्राणी तो कोई बचेगा ही नहीं, स्वयं धरती भी किसी प्राणी के जीवन-धारण में अयोग्य हो जाएगी।
यह तो एक अन्तिम बात है, पर इससे पहले के खतरे भी कम नहीं हैं । विस्फोटों से उद्भूत धुआं पर्यावरण में फैलकर बादलों के रूप में बदल जाता है। जब बादल जल के रूप में पृथ्वी पर बरसते हैं तो धरती भी विकिरण के प्रभाव से मुक्त नहीं रह सकती। उससे घास-पात तथा वनस्पति भी रेडियोधर्मिता से बच नहीं सकेगी। इन सबमें विषाक्तता होने से मनुष्य का तन ही नहीं बल्कि मन भी विषाक्त हुए बिना नहीं रहेगा। वह भी सांप की तरह अपनी सांस से फुफकारें लेने लगेगा।
विस्फोटों से प्रभावित धलि जब समुद्र में पहुंचेगी तो उससे जलजंतु भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। वे बीमार होकर मृत्यु के मुख में चले जायेंगे। जो बच जायेंगे वे यदि मनुष्य का आहार बने तो उसे भी मौत के मुख में धकेल देंगे।
ऊपरी वायुमंडल में किए जाने वाले नाभिकीय विस्फोटों से बड़ी मात्रा में नाईट्रिक आक्साइड के अणु पंदा होते हैं, उससे ओजोन की समूची जीवनरक्षक परत का नष्ट हो जाना सुनिश्चित है । नाभिकीय युद्ध से जितनी तबाही होगी उससे अधिक तबाही ओजोन की परत के नष्ट हो जाने से होगी।
__इस खतरे से बचने का एक ही उपाय है कि युद्ध तथा नाभिकीय शस्त्रों के उपयोग को बन्द किया जाये। जयप्रकाश नारायण ने ठीक ही कहा था-अणुबम बनाना नैतिक दृष्टि से अनुचित है, राजनैतिक दृष्टि से खतरनाक है और सामाजिक दृष्टि से अनावश्यक है। जब यह ज्ञात है कि सीमित या असीमित किसी प्रकार के नाभिकीय युद्ध का अर्थ सर्वनाश, पूरी सृष्टि का संहार और मानव द्वारा आज तक की अजित उपलब्धियों का ध्वंस है तो क्यों नहीं इस सामरिक-सज्जा पर अंकुश लगाया जाये ? आज पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के प्रत्येक महाद्वीप के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, समरनीति के आचार्यों तथा शांति रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध जन-समुदाय ने यह अनुभव कर लिया है कि युद्ध से प्रलय की लोमहर्षक स्थिति पैदा हो सकती है तो क्यों इस पागलपन को उत्तरोत्तर बढ़ाया जा रहा है, यह एक चिन्तन का विषय है। हथियारों का घातक धंधा
युद्ध का एक रोमांचक रूप जो आज उभर रहा है वह है.---शस्त्रों का व्यापार । सचमुच कुछ देशों के लोग अपनी वैज्ञानिक क्षमता का लाभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org