SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ अहिंसा : व्यक्ति और समाज हैं जबकि एक स्कूली बच्चे पर केवल ३८० डालर खर्च किए जाते हैं । विश्व में एक लाख आबादी पर ५५६ सैनिक हैं जबकि डाक्टर केवल ८५ हैं । अविकसित देशों में २५० आबादी पर एक सैनिक है जबकि ३७०० की आबादी पर एक डाक्टर है । आज विश्व में ६० करोड़ लोग बेरोजगार हैं, ६० करोड़ लोग निरक्षर हैं, ५० करोड़ लोग बीमारियों से ग्रस्त हैं, १०० करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे जी रहे हैं और समुचित चिकित्सा तथा पोषक भोजन के अभाव में ४० हजार बच्चे प्रतिदिन मौत के मुख में प्रवेश कर रहे हैं । १६७५-८३ के दौरान विश्व सैनिक खर्च में २५ प्रतिशत से भी ज्यादा वृद्धि हुई है । संयुक्त राष्ट्र एजेन्सियों के अनुसार १९८० में विश्व सैनिक खर्च अफ्रीका एवं लैटिन अमरीका के कुल राष्ट्रीय उत्पादन के बराबर था और वह विश्व के उत्पादन के कुल मूल्यों के ६ प्रतिशत के बराबर था । यह अनुमान है कि विश्व में हथियारों तथा सैनिकों पर प्रति घंटा ७.४ करोड़ डालर खर्च किया जा रहा है । १६६० के लिए विश्व का सैनिक खर्च १५४५ अरब डालर अनुमानित है । आज तीसरी दुनिया में ऐसी अनेक सरकारें हैं जिन्हें अपनी ही जनता का बड़ा शत्रु कहा जा सकता है । ये ऐसी सरकारें हैं जो अपने नागरिकों के विरुद्ध शस्त्र सन्नद्ध हो रही हैं। बहुत बार ये महाशक्तियों की प्रतिद्वन्द्विता में भी फंस जाते हैं । १६८१ में इन देशों का सैनिक खर्च ८१ अरब डालर था जो कुल खर्च का १५.६ प्रतिशत था । भारत ने १९८१ में सशस्त्र सेनाओं पर ५७०००००००० डालर खर्च किया, पर निरन्तर यह खर्च बढ़ता ही जा रहा है । सैनिक खर्च में वृद्धि के कारण तीसरी दुनियां के देश न केवल आवश्यक विकास से वंचित रह जाते हैं अपितु आपसी तनाव भी बढ़ जाते हैं । इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । हथियारों की होड़ पर भारी फौजी खर्च ने न केवल तीसरी दुनिया के देशों को आवश्यक विकासगत वित्तीय जरूरतों से वंचित कर दिया है, अपितु लोगों के बीच अपने राष्ट्र तथा विश्व के भविष्य के बारे में भी निराशा उत्पन्न कर दी है। बताया जाता है कि अभी विश्व में पचास हजार से भी अधिक नाभिकीय हथियार हैं और उनमें हजारों डिलीवरी प्रणाली से सम्बद्ध हैं । इनकी विभीषिका के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । यदि नाभिकीय युद्ध होता है तो उसके अकल्प्य परिणाम हो सकते हैं। इसमें किसी एक राष्ट्र के जय-पराजय की बात नहीं रहेगी अपितु पूरे भूमंडल का परिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ जाएगा। पृथ्वी लायक ही नहीं रह जाएगी । वायुमंडलीय तथा यह सिद्ध हो गया है कि सीमित अणुयुद्ध से भी Jain Education International मानव जीवन के लिए रहने जीव विज्ञान के अध्ययनों से भयंकर गर्मी, विस्फोट और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy