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युद्ध के कटु परिणाम
युद्ध मनुष्य के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप है । जब यह पागलपन सवार हो जाता है तो आदमी ऐसा राक्षस बन जाता है कि लाखों-लाखों लोगों को देखते-देखते मौत के घाट उतार देता है । वह ऐसा नरमेध रचा
ता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । प्रथम महायुद्ध में ९००८००० लोग मारे गए थे । १९१९ से लेकर १९३६ तक के २० वर्षों में भी छिटपुट युद्धों में १३३६००० लोग मारे गए। दूसरे महायुद्ध में तो उनकी संख्या ५००००००० तक पहुंच गई। उस युद्ध में अकेले जापान के २६०००० लोग मारे गए थे । ४१२००० लोग घायल हुए, ६२००००० लोग बेघर हो गए । २२१०००० मकान ढह गए या जलकर भस्म हो गए । १२०६ नगरों में ४४ नगरों का नामोनिशान मिट गया । यह तो उस समय की बात है जब सीमित अणुबम थे । आज तो ऐसे हाईड्रोजन बम बन गए हैं जो २००० डी. एन. टी. की क्षमता रखते हैं । एक हाइड्रोजन बम ३० अणुबमों के बराबर होता है । वह १२०० वर्ग मील को अग्नि से जला डाल सकता है । १०० मील के घेरे को धमाकों से हिला देता है तथा ३०००० वर्गमील क्षेत्र में विनाश के बीज बो सकता है । महावीर ने ठीक ही कहा है-हिंसा पाप है, चंड है, रुद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, निर्घृण है, नृशंस है, महाभय है आदि-आदि ।
इन वर्षों में आणविक शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों ने निरन्तर खोज और निर्माण के जरिए आणविक शस्त्रों और संचार साधनों का इतना विकास कर लिया है कि उनमें से प्रत्येक राष्ट्र दर्जनों बार पूरी धरती के निवासियों को ध्वस्त कर सकता है । सचमुच आज युद्ध की बड़ी जबरदस्त तैयारियां हो रही हैं । यह अनुमान है कि विश्व में १९८३ के दौरान सैनिक अनुसंधान तथा विकास पर ६००० करोड़ डालर खर्च इसमें सोवियत संघ तथा अमेरिका का खर्च ८० प्रतिशत है । ब्रिटेन, फ्रांस, चीन तथा पश्चिमी जर्मनी ने सैनिक अनुसंधान एवं विकास पर ५० प्रतिशत खर्च किए । यह उल्लेखनीय है कि १९८४ में केवल अमेरिका ने सैनिक अनुसंधान तथा विकास पर करीब ३२ अरब डालर खर्च किए ।
किए गए। इनके साथ
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की एक विज्ञप्ति के अनुसार एशियाई देश रक्षा पर वार्षिक बजट का २० प्रतिशत खर्च कर रहे हैं, जबकि शिक्षा तथा सामाजिक कल्याण पर क्रमशः ८ और ३ प्रतिशत ही करते हैं । ऐसा अनुमान है कि विश्व में प्रतिवर्ष एक सैनिक पर १८३०० डालर खर्च किये जा रहे
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