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युद्ध समस्या है, समाधान नहीं
को बीभत्स रूप से मौत के घाट उतारा गया। इस युद्ध में पूरी तरह से टूटा हुआ जापान अपनी लगन और पुरुषार्थ से बहुत जल्दी संभल गया। औद्योगिक दृष्टि से उसने बहुत विकास कर लिया, पर वे लाखों व्यक्ति जो बेमौत मारे गए, कहां से लौटेंगे ?
युद्ध के भयंकर दुष्परिणामों को देखने और भोगने के बाद भी मनुष्य यदा-कदा युद्ध पर आमादा क्यों हो जाता है ? यह एक चिरन्तन प्रश्न है। आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक-किसी भी तरह के कारण हों, युद्ध मानव जाति के विनाश का रास्ता है। युद्ध के सहारे कभी समस्या का समाधान हुआ हो, उदाहरण नहीं मिलता। एक-दूसरे देश की सीमाओं में घुसपैठ करने वाले युद्ध के द्वारा थोड़ी-बहुत भूमि भले ही हथियालें, पर वे अपने देश के लिए ऐसा सिरदर्द मोल ले लेते हैं, जिसे सदियों तक भोगना पड़ता है। पारस्परिक विश्वास, सद्भावना और सह-अस्तित्व जैसे मूल्यों को प्रतिष्ठित करके ही मनुष्य शान्ति से जी सकता है ।
इस वर्ष का 'नेहरू शान्ति पुरस्कार' संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव जेवियर पेरेज डी क्वेया को दिया गया। श्री क्वेया ने विश्व शान्ति और सद्भावना बढ़ाने की दिशा में जो काम किया और कर रहे हैं, उसी का मूल्यांकन करके उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। संसार आज युद्ध और हिंसा से ऊब चुका है। इसलिए वह ऐसे प्रयत्नों के समर्थन में सहमत हो जाता है । युद्ध करने वाले और युद्ध को प्रोत्साहन देने वाले किसी भी व्यक्ति को आज तक ऐसा कोई पुरस्कार नहीं मिला, जो उसे गौरवान्वित कर सके, क्योंकि युद्ध बरबादी है, अशान्ति है, और अस्थिरता है । जान-माल की इस भारी तबाही से बचने के लिए समूचे विश्व को अहिंसा की शरण में जाना होगा।
___ विश्व में हिंसा-रहित और परमाणु-शस्त्र-विहीन समाज-संरचना के लिए प्रतिबद्ध राष्ट्रों में भारत भी एक है। भारतीय संस्कृति में अहिंसा, अनेकान्त और भाईचारे की पुट है । अहिंसा और अनेकान्त-प्रधान जीवन-शैली में हिंसा का हस्तक्षेप कभी काम्य नहीं होता । फिर भी जब तक हिंसा और अशान्ति के कारण मौजूद हैं, बड़े या छोटे स्तर पर युद्ध की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । विश्व युद्ध की तो कल्पना ही भयावह है, गृहयुद्ध से भी देश का कितना अहित हो रहा है, सब जानते हैं। युद्ध की विभीषिका से संत्रस्त मनुष्य अब भी अपने मूल संस्कारों में लौट आए, अनर्थ हिंसा से बचता रहे
और विश्व-शान्ति के लिए किए जा रहे प्रयत्नों में भागीदार बन जाए तो हिंसा की आग में झुलसती मानव जाति को त्राण मिल सकता है ।
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