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युद्ध समस्या है, समाधान नहीं
संयुक्त राष्ट्र महा सभा की घोषणा के अनुसार सन् १९८८ का वर्ष परमाणु निरस्त्रीकरण का वर्ष है। इस वर्ष की शुरूआत से पहले ही ८ दिसम्बर १९८७ को वाशिंगटन में अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हो गया। उस समझौते के अनुसार अमेरिका और सोवियत संघ ५०० से ५५०० किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाले सभी प्रेक्षेपास्त्रों को नष्ट कर देगे। यह समझौता सूर्योदय से कुछ समय पहले आकाश में फैलने वाले उजाले के समान सबको राहत देने वाला था।
१ जून १९८८ से वह समझौता लागू हो गया । अमेरिका और सोवियत संघ द्वारा संयुक्त रूप में उठाए गए कदम का स्वागत विश्व के सभी देशों ने किया।
८ अगस्त १९८८ को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक नयी घोषणा करके ईरान और ईराक के बीच चल रही आठ वर्षों की लड़ाई समाप्त करने का दावा किया है । युद्धविराम के लिए २० अगस्त का दिन तय किया गया। पर समाचार पत्रों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के तत्काल बाद दोनों देशों की आक्रामक मुद्रा बदल गई। उनकी सामरिक गतिविधियां शिथिल हो गई। ईरान और ईराक की यह लड़ाई २० सितम्बर १९८० को शुरू हुई थी। तब से अब तक आठ साल के खुले संघर्ष में दस लाख लोगों के मारे जाने की संभावना की गई है। दोनों देशों के एक लाख सैनिक युद्धबन्दी बने हुए हैं। ऊपर से लड़ाई समाप्त हो गई। इसे भावनात्मक स्तर पर समाप्त करने के लिए २५ अगस्त से जेनेवा में दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत होगी । इस वार्तालाप में संयुक्त राष्ट्र संघ की अहम् भूमिका रहेगी, ऐसी चर्चा है ।
ईरान और ईराक के इस युद्धविराम का भी उन सभी देशों ने स्वागत किया है, जो मानवीय मूल्यों में विश्वास रखते हैं । यह बात अब निर्विवाद रूप से प्रमाणित हो रही है कि कोई भी देश अन्तरंग में युद्ध नहीं चाहता। क्योंकि युद्ध से कोई एक ही पीढ़ी नहीं, आने वाली कई पीढियां प्रभावित होती हैं । सन् १९४५ में दूसरे विश्वयुद्ध के बीच सूर्योदय के देश जापान के दो प्रमुख नगर-हीरोशिमा और नागाशाकी पर अमेरिका द्वारा गिराए गए अणुबमों का हादसा अब भी लोग भूले नहीं हैं।
मानवता के इतिहास का वह सबसे काला दिन था, जब लाखों लोगों
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