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मानविकी पर्यावरण में असंतुलन
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एक समय था जब सन्तान की प्राप्ति में मनुष्य पराधीन था । सन्तान क्या हो ? कैसी हो ? इस सम्बन्ध में किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं होता था । जब से 'टेस्ट ट्यूब बेबी' अस्तित्व में आई है, प्रजनन विज्ञान में नये-नये अनुसंधान होने लगे हैं । ऐसे ही एक अनुसंधान से गर्भस्थ शिशु के लिंग का ज्ञान किया जाता है | लिंग की पहचान कराने वाली पद्धति का नाम है, 'एमिनो सिंथेसिस' । इस पद्धति के विकास का उद्देश्य था - गर्भस्थ शिशु में उपस्थित विषमताओं का अध्ययन । उस अध्ययन से शिशु की अपंगता, मानसिक असंतुलन, आनुवंशिक बीमारी आदि का पता लगाकर उसका उपचार करने की बात प्रमुख थी । किन्तु यह बात गौण हो गई और प्रमुख लक्ष्य बन गया गर्भस्थ शिशु के लिंग का ज्ञान । चिकित्सक 'एमिनो सिथेसिस' द्वारा गर्भ परीक्षण कर बता देते हैं कि गर्भ में लड़का है या लड़की । लड़की होती है तो गर्भ समापन करा लिया जाता है । बम्बई महानगर में हुए एक सर्वे के अनुसार निन्नानवे प्रतिशत गर्भ समापन कन्या भ्रूणों का होता है । यह नारी शोषण का आधुनिक वैज्ञानिक रूप है । इसमें कन्याभ्रूण की हत्या का अधिक दायित्व उसकी मां का होता है ।
मां की ममता का एक रूप तो वह था, जब वह अपने विकलांग, विक्षिप्त और बीमार बच्चे का आखिरी सांस तक पालन करती थी । परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा की गई उसकी उपेक्षा से मां पूरी तरह से आहत हो जाती थी । वही भारतीय मां अपने अजन्मे अबोल शिशु को अपनी सहमति से समाप्त कर देती है । क्यों ? इसलिए नहीं कि वह विकलांग है, विक्षिप्त है, बीमार है । पर इसलिए कि वह एक लड़की है । क्या उसकी ममता का स्रोत सूख गया है ? कन्या भ्रूणों की बढ़ती हुई हत्या एक ओर मनुष्य को नृशंस करार दे रही है, तो दूसरी ओर स्त्रियों की संख्या में भारी कमी से मानविकी पर्यावरण में भारी असंतुलन का खतरा उत्पन्न कर रही है ।
कन्या भ्रूण की हत्या महिला जाति की अवमानना है और प्रकृति के सन्तुलन को बिगाड़ने का एक ऐसा प्रयास है, जो सीधा लोगों की आंख पर नहीं आता । इस अमानवीय और घातक प्रवृत्ति को रोकने के लिए धार्मिक सामाजिक एवं राजनैतिक- सभी संगठनों को सम्मिलित अभियान चलाने की जरूरत है। ज्ञात हुआ कि महाराष्ट्र में गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता करने वाली सभी तकनीकों पर कानूनी रोक लगा दी गई। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने इस सिलसिले में विधानसभा में अध्यादेश पेश किया था । इस कानून के बनने से वहां स्त्रीभ्रूण हत्याओं पर स्वतः रोक लग गई है । देखना यह है कि अब कितने राज्य महाराष्ट्र का अनुकरण कर इस मानवीय अभियान में अपनी साझेदारी निभाते हैं ।
कानून बनने के बाद कन्या भ्रूणों की हत्या रुक ही जाएगी, ऐसा
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