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________________ सामुदायिक जीवन और सहिष्णुता सामुदायिक जीवन एक कठोर साधना है। जिसे साधना का अभ्यास नहीं है, वह समूह का जीवन नहीं जी सकता। अकेले में न कोई शब्द, न कोई कलह और न कोई संघर्ष । एक से दो और दो से अधिक होते ही इन सब का प्रारम्भ हो जाता है। फिर प्रारम्भ होता है तनाव, वैमनस्य, वैर और विरोध । यह सामुदायिक जीवन का एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू है--सहयोग, सौमनस्य और उपयोगिता। इनका आधारभूत तत्त्व है-सहिष्णुता । सहिष्णुता सामुदायिक जीवन का एक अलंकरण है । छोटे और बड़े सभी कहते हैं-सहन करना सीखो। पर सह-अस्तित्व, सापेक्षता और सामुदायिकता की चेतना जागे बिना सहिष्णुता फलित नहीं होती। अन्याय के प्रतिकार का निर्दोष उपाय प्रश्न होता है-क्या अन्याय को भी सहन करें ? न्याय को सहन करना भी कठिन काम है। फिर यह परामर्श कैसे दिया जाए कि आप अन्याय को सहन करें। यह परामर्श दिया जा सकता है कि न्याय के साथ अन्याय न करें। अन्याय का प्रतिकार करना आवश्यक है। वह सहिष्णुता के साथ ही किया जा सकता है। असहिष्णुता के साथ अन्याय का प्रतिकार करना एक अन्याय को जन्म देना है। अन्याय के प्रतिकार का निर्दोष उपाय है-सहिष्णुता का प्रयोग । अन्याय को सहन करना दुर्बलता है । अन्याय के प्रति अपनी ओर से अन्याय न हो—यह विवेक है । इस विवेक-चेतना के द्वारा अन्याय का सही ढंग से प्रतिकार किया जा सकता है। अन्याय का प्रतिकार एक समर्थ व्यक्ति ही कर सकता है। सहिष्णुता का अर्थ है--सामर्थ्यपूर्ण समायोजन । संवेग नियंत्रण से ही सहिष्णुता का विकास ___ सहिष्णुता का अर्थ है-शक्तिशाली होना। आदि से अन्त तक शक्तिशाली वही हो सकता है, जिसका अपने संवेगों पर नियन्त्रण होता है । सहिष्णुता का अर्थ है-संवेग पर नियन्त्रण । इसके अभाव में किसी को कोई सहन नहीं करता। शिष्य गुरु की सीख को सहन नहीं करता और पुत्र पिता की सीख को पसन्द नहीं करता। बया ने बन्दर को सीख दी वर्षा हो रही है। कांप रहे हो। एक झोंपड़ी बना लो। फिर आराम से रह सकोगे । सीख अच्छी थी। बया जैसा छोटा प्राणी बन्दर को सीख दे, क्या यह ठीक है ? बन्दर का पारा चढ़ गया। झोंपड़ी तो नहीं बनाई। बया के घोंसले को उजाड़ दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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