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________________ सामुदायिक जीवन और सहिष्णुता १०५ बन्दर एक जानवर है। उसमें संवेग पर नियन्त्रण करने की क्षमता विकसित नहीं है और उसे नियंत्रण का प्रशिक्षण भी नहीं दिया जा सकता। इसलिए वह ऐसा कर सकता है। क्या आदमी ऐसा नहीं कर सकता ? जिस आदमी को संवेग-नियंत्रण का प्रशिक्षण नहीं मिला है, वह भी अच्छी सीख सुनकर अपने घर का निर्माण नहीं करता, सीख देने वाले के घर को उजाड़ सकता है। असहयोग भी सहिष्णुता है सहिष्णुता का एक अर्थ है-असहयोग । न प्रवृत्ति और न निवृत्ति, किंतु उपेक्षा करना। उपेक्षा का अर्थ है असहयोग । गांधीजी ने असहयोग का आंदोलन चलाया। शासनतंत्र ठप्प हो गया । गाली के प्रति गाली देने का मतलब है गाली देने वाले का सहयोग करना। क्रोध के प्रति क्रोध करने का मतलब है क्रोध करने वाले का सहयोग करना। क्रोध करने वाले की उपेक्षा करो, उसका क्रोध आगे नहीं बढ़ेगा। गाली देने वाले की उपेक्षा करो, उसकी गाली आगे नहीं बढ़ेगी। मौत का भय सबसे बड़ा भय है। जो मौत से डरता है, वह मौत का सहयोग करता है । जो मौत के भय से मुक्त हो जाता है, वह उससे सहयोग नहीं करता। सहयोग करने वाला मौत को जल्दी बुलावा देता है और असहयोग करने वाला पूर्ण आयु को जी सकता है। सहिष्णुता का अर्थ है---सुधार के लिए अवसर देना। गुरु कभी-कभी शिष्य के अविनय को सहन कर लेते हैं। पिता कभी-कभी पुत्र की तुच्छता को सह लेता है । इसका अर्थ कमजोरी नहीं, सुधरने का अवसर देना है । जो बड़े लोग सहन करना नहीं जानते, वे सामुदायिक जीवन जीने की कला को नहीं जानते । वे परिवार या समुदाय को साथ लेकर चलना नहीं जानते । सामुदायिक जीवन : महान् प्रयोग सामुदायिक जीवन अपने आप में एक बड़ा प्रयोग है। कोई व्यक्ति हिमालय की गुफा में अकेला बैठा है । वह अकेला ही है। वहां सहिष्णुता की कसौटी नहीं हो सकती। सहिष्णुता की कसौटी समाज में होती है । जो समाज में रहे और अकेलेपन की अनुभूति के साथ जिए, वही सहिष्णु हो सकता है । अध्याल्म का सूत्र है—अकेलेपन की अनुभूति । उपाध्याय विनयविजय ने उसका चित्रण इन शब्दों में किया है एक उत्पद्यते तनुमानेक एव विपद्यते । एक एव हि कर्म चिनुते, सैककः फलमश्नुते ॥ व्यक्ति अकेला आता है, अकेला जाता है। अकेला कर्म का संचय करता है और अकेला ही उसका फल भोगता है । इस अध्यात्म-सूत्र में रहना और व्यवहार में जीना—यह अनेकान्त है । हम रहें अपने आप में और जिएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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