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________________ १०२ अहिंसा : व्यक्ति और समाज प्रमदा मदिरा लक्ष्मी विज्ञेया त्रिविधा सुरा । दृष्ट्वैवोन्मादयेदेका पीता चान्यातिसंग्रहात् ॥ सुरा के तीन रूप हैं-स्त्री, मदिरा और लक्ष्मी । स्त्री में इतना नशा होता है कि वह उसे देखने वाले को देखने मात्र से उन्मत्त बना देती है। मदिरा का नशा उसे पीने के बाद चढ़ता है और लक्ष्मी का नशा उसका अतिसंग्रह होने पर चढ़ता है । इन तीनों की मादकता मनुष्य का अनुभूत सत्य है। कुछ चीजें इनसे भी अधिक मादक हैं। अहं की मादकता, क्रूरता की मादकता आदि को इसी कोटि में लिया जा सकता है। एक और मादकता है इस संसार में। वह है साम्प्रदायिकता की मादकता । सम्प्रदाय की सृष्टि बहुत ही ऊंचे उद्देश्यों से हुई होगी पर जिस रूप में इसका इस्तेमाल हो रहा है, वह रूप बहुत ही विकृत है, भद्दा है । उसे देखकर लगता है कि सम्प्रदाय का अस्तित्व में आना ही एक बड़ी भूल थी। दूसरी भूल हो रही है धर्म और सम्प्रदाय को एक समझने की । सम्प्रदायसम्प्रदाय है और धर्म-धर्म है, इस बात को वे समझ सकते हैं, जो रस और छिलके के अस्तित्व को उनकी उपयोगिता के संदर्भ में देखते हैं। __ साम्प्रदायिकता भी हिंसा का एक कारण है। साम्प्रदायिक हिंसा की परम्परा नयी नहीं है। विश्व का इतिहास ऐसी भयंकर दुर्घटनाओं से भरा पड़ा है, जो साम्प्रदायिक हिंसा का दस्तावेज है। भिन्न-भिन्न धर्म-सम्प्रदायों के बीच हुए संघर्ष और उनके दुष्परिणाम जितने घातक रहे हैं, एक ही धर्म को मानने वाले सम्प्रदायों की हिंसा भी कम घातक नहीं है । एक ओर वैदिक संस्कृति एवं श्रमण संस्कृति के बीच हिंसा की आग प्रज्वलित की गई, वहां दूसरी ओर आर्यसमाजी और सनातनी, दिगम्बर और श्वेताम्बर, सिया और सुन्नी, प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक आदि एक ही धार्मिक विश्वास रखने वाली दो-दो शाखाओं में जमकर संघर्ष हुआ। ऐसे संघर्ष के समय असामाजिक तत्त्वों को खुलकर खेलने का मौका मिलता है। असामाजिक तत्त्वों अथवा साम्प्रदायिक तत्त्वों द्वारा शुरू की गई इस लड़ाई का अन्त होता है हिंसा में, बिखराव में, वैमनस्य में और लोकजीवन को अस्त-व्यस्त करने में । गलत तत्त्व अपना प्रयोजन सिद्ध होने के बाद भूमिगत हो जाते हैं, बदनामी का तिलक निकलता है धर्म के माथे पर, जबकि संसार का कोई भी धर्म हिंसा को प्रश्रय दे ही नहीं सकता। हिन्दुस्तान अनेक बार साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार हुआ है । इस देश की शान्तिप्रिय जनता को साम्प्रदायिक उन्माद के हादसे देखने पड़े हैं। आज भी देश में यत्र-तत्र जो हिंसक वारदातें हो रही हैं, क्या उनमें जनता की प्रेरणा है ? जनता शान्ति से जीना चाहती है। उसके शांति-सरोवर में कंकड़पत्थर फेंककर तरंगें उठाने वाले वे लोग हैं, जो साम्प्रदायिक मानसिकता के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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