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________________ मन से भी होती है हिंसा हिंसा एक समस्या है । यह ऐसी समस्या है, जो अतीत में थी, वर्तमान में है और अनागत में नहीं होगी, ऐसा विश्वास नहीं है। हिंसा कब होती है, क्यों होती है, कैसे होती है और इसकी परिणति किस रूप में होती है ? ये सारे सवाल समाधान की रोशनी चाहते हैं । हिंसा होने का कोई काल निर्धारित नहीं होता। वह कभी भी और कहीं भी घटित हो सकती है, क्योंकि हिंसा का उपादान आदमी के भीतर रहता है। छोटा-सा निमित्त मिलते ही वह उभरकर बाहर आ जाता है। ढेर सारे घास में एक छोटी-सी चिनगारी रख दी जाए तो पूरी घास भस्मसात् हो जाती है। हिंसा की आग भी छोटा-सा निमित्त मिलते ही भभक उठती है । उस आग पर काबू पाना कठिन हो जाता है । हिंसा होने का मूलभूत कारण है-हिंसा के संस्कार। वे संस्कार एक जन्म से नहीं, जन्म-जन्म से संचित होते हैं। अपने विचारों और हितों के प्रतिकूल बात सामने आने पर वे संस्कार उत्तेजित होते हैं। उत्तेजना अपने आप में हिंसा है। उसके कारण हिंसा का स्थूल रूप भी सामने आ जाता हिंसा शस्त्र से ही हो, यह आवश्यक नहीं है। मन से हिंसा हो सकती है, वाणी से हिंसा हो सकती है, शरीर से हिंसा हो सकती है। राजनैतिक माहौल में हिंसा हो सकती है । वचारिक एवं व्यावसायिक स्तर पर हिंसा हो सकती है । सामाजिक संदर्भो में हिंसा हो सकती है और साम्प्रदायिकता के आधार पर भी हिंसा भड़क सकती है। हिंसा की यात्रा के लिए इतने रास्ते खुले हुए हैं कि उनको समझ पाना भी कठिन है। किसी व्यक्ति को अपने अधीन बनाना, उस पर हुकमत चलाना, उसे सताना, मानसिक यातना देना आदि सब हिंसा की परिणतियां हैं। इसकी सबसे अधिक स्थूल परिणति है-प्राण-वियोजन। किसी अजनबी व्यक्ति की आकस्मिक मृत्यु देखकर भी संवेदनशील व्यक्ति का मन उद्वेलित हो जाता है । ऐसी स्थिति में बेगुनाह लोगों को जानबूझकर मौत के घाट उतारना समूची मानव जाति में दहशत पैदा करना है। मेरे अभिमत से यह क्रूरता की पराकाष्ठा है। यह क्रूरता भी एक प्रकार की मदिरा है, जो व्यक्ति की करुणा का रस सोखकर उसे मानव से दानव बना देती है । प्राचीनकाल में सुरा के तीन रूप मान्य थे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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