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________________ अहिंसा : व्यक्ति और समाज एक अणुव्रती इस सीमा को स्वीकार करने में सक्षम नहीं है । इसलिए वह प्रत्याक्रमण का अपवाद रखता है। 'प्रत्याक्रमण न करना' एक आदर्श है । अणुव्रती व्यक्ति इस आदर्श को यथार्थ मानकर चलता है, किन्तु कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को वह उस आचार में ला नहीं सकता। इसलिए उसके संकल्प की भाषा यही हो सकती है कि मैं किसी पर आक्रमण नहीं करूंगा और आक्रामकनीति का समर्थन भी नहीं करूंगा। आक्रमण के अनेक प्रकार हैं। सैनिक आक्रमण स्थूल है अत: वह स्पष्ट है । व्यापारिक, बौद्धिक, वैचारिक और वाचिक आक्रमण भी कम घातक नहीं है । व्यापारिक क्षेत्र में स्वत्व-हरण किया जाता है । यह आज की ज्वलन्त समस्या है । एक देश के व्यक्ति दूसरे देश में व्यापारिक प्रभुत्व जमा लेते हैं। स्थानीय लोगों की सुख-सुविधाओं को क्षति पहुंचाकर व्यवसाय बढ़ाने वाले लोग व्यापारिक क्षेत्र में आक्रान्ता कहलाते हैं। अपनी आक्रामक नीति से बे लोग दूसरों के मनों में वैमनस्य पैदा करते हैं । इस वैमनस्य से प्रान्तीय समस्याएं मुंह खोल देती हैं । बंगाल, असम और तमिलनाडु की जनता में व्यवसाय के क्षेत्र में बिद्रोह की आग सुलग रही है । उसके संत्रास को मिटाने का एकमात्र हेतु है - व्यवसाय क्षेत्र से आक्रामक नीति का बहिष्कार । इस नीति का बहिष्कार नहीं होगा तो उन लोगों में प्रत्याकरण की भावना और अधिक तीव्रता से बढ़ती जाएगी। आक्रमण करना और आक्रामक नीति का समर्थन करना, इन दोनों स्थितियों में कोई अन्तर है क्या ? आक्रमण दो प्रकार से होता है-प्रत्यक्ष और परोक्ष । कुछ राष्ट्र और वर्ग प्रत्यक्ष आक्रमण से बचते हैं किन्तु वे आक्रामक नीति के समर्थन से लाभ उठाते हैं । उनका यह परोक्ष आक्रमण अधिक भयंकर होता है । अनेक छोटे राष्ट्रों के आक्रमण में बड़े राष्ट्रों का हाथ रहता है। उनका समर्थन और सहयोग न हो तो छोटे राष्ट्र अधिक समय तक लड़ ही नहीं सकते। प्राचीन समय में सैनिक आक्रमण को अच्छा माना जाता था। अनेक राजाओं के दिग्विजय की घटनाएं इतिहास में सुरक्षित हैं। विजय प्राप्त कर लौटने पर उनकी कीर्ति यत्र-तत्र फैल जाती थी। उनके विरोध में प्रदर्शन करने वाला अथवा एक शब्द बोलने वाला कोई भी व्यक्ति नहीं मिलता था। विजय पाने के लिए शक्ति का पूरा उपयोग होता था । लूटमार जैसे कार्यों से जनता को संत्रस्त किया जाता था। किन्तु जब से राजनयिक व्यक्तियों के विचारों में अहिंसा का विकास होने लगा है, उन्होंने सिद्धान्त-रूप में आक्रमण को बुरा वताया है। राजनीति में अहिंसा का प्रवेश होने से सार्वभौम प्रभुसत्ता और राष्ट्रीय अखण्डता को सम्मान प्राप्त हआ है। भारतीय राजनीति में स्वर्गीय प्रधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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