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________________ आक्रामक मनोवृत्ति के हेतु आक्रमण एक मनोवृत्ति है । इसकी उत्पत्ति में अनेक वस्तुएं निमित्त बनती हैं। भय की प्रेरणा से आक्रामक मनोवृत्ति का उद्भव होता है । लोभ, क्रोध, क्षोभ आदि वृत्तियां इसका हेतु बनती हैं। किसी को क्षति पहुंचाने के लिए अथवा अपनी सुरक्षा के लिए व्यक्ति आक्रान्ता बन जाता है। वर्तमान की सुरक्षा के साथ भविष्य की असुरक्षा से बचाव करने के लिए, अपनी सुख-सुविधा को विस्तार देने के लिए, स्वत्व अपहरण की भावना से तथा साम्राज्य-लिप्सा से भी मनुष्य आक्रामक बन जाता है । स्थानांग मूत्र में आक्रामक मनोभावों का विश्लेषण करते हुए लिखा है ---- व्यक्ति चार कारणों से प्रसर्पण--विस्तार या फैलाव करता है १. अनर्जित सुखों का अर्जन करने के लिए। २. अजित सुखों का संरक्षण करने के लिए। ३. अनजित भोगों का अर्जन करने के लिए । ४. अजित भोगों का संरक्षण करने के लिए। अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्त की सुरक्षा मनुष्य की प्रवृत्ति का मूल है। जो व्यक्ति इस काम में सहायक बनते हैं, उनके साथ उसकी आत्मीयता भी बढ़ जाती है। किन्तु जो व्यक्ति थोड़ी भी बाधा पहुंचाने की सोचते हैं, उनके प्रति शत्रुता का भाव पैदा हो जाता है। शत्रुता और मित्रता की भेद-रेखा चिन्तन और व्यवहार में भेद पैदा करती है। स्वत्व और परत्व की यह मनोवृत्ति ही मनुष्य को आक्रान्ता बनाती है। ___ कोई देश, वर्ग या व्यक्ति दूसरे देश, वर्ग और व्यक्ति को अन्याय सहने के लिए बाध्य करते हैं । क्या उस अन्याय के प्रतिकार में खड़ा होने वाला व्यक्ति आक्रान्ता कहलाएगा ? व्रत-स्वीकार की दो सीमाएं हैं-महाव्रत और अणुव्रत । महाव्रत की परिभाषा में सब प्रकार का प्रमाद त्याज्य है। आक्रमण और प्रत्याक्रमण दोनों प्रमाद हैं । अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियों से प्रसत्ति और विपत्ति का अनुभव प्रमाद है । पदार्थ-जगत् में स्वत्व और परत्व की अनुभूति प्रमाद है । प्रमाद-मुक्त व्यक्ति आक्रमण और प्रत्याक्रमण दोनों स्थितियों से दूर रहता है। प्रमाद-मुक्ति के लिए प्रयत्नशील व्यक्ति आक्रमण और प्रत्याक्रमण की भावना को त्याज्य मानकर चलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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