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________________ आक्रामक मनोवृत्ति के हेतु मंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने अहिंसा को स्थान दिया। उन्होने पंचशील के माध्यम से सब राष्ट्रों के लिए अनाक्रमण की आवश्यकता प्रतिपादित की, जैसे १. एक-दूसरे की प्रादेशिक या भौगोलिक अखण्डता और सार्वभौमता का सम्मान । २. आक्रमण न करना। ३. आर्थिक राजनैतिक अथवा सैद्धान्तिक किन्हीं भी कारणों से एकदूसरे के घरेल मामलों में हस्तक्षेप न करना । ४. समानता एवं परस्पर लाभ । ५. शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व । पंचशील में आक्रमण न करने की विचारधारा का प्रवेश राजनीति के क्षेत्र में अहिंसा की बहुत बड़ी सफलता है। यद्यपि वैयक्तिक स्वार्थ-भावना को छोड़कर इस नीति को अपनाना बहुत कठिन है, फिर भी सिद्धान्ततः इसे मान्यता प्राप्त हो चुकी है । आक्रमणकारी प्रवृत्तियों में स्पष्ट रूप से पहल करने वाले राष्ट्र भी यही सिद्ध करते हैं कि हम आक्रान्ता नहीं हैं । अपनी सुरक्षा के लिए हमें प्रत्याक्रमण करना पड़ रहा है । हम तो शान्ति चाहते हैं । युद्ध में जन और धन की जो हानि होती है वह राष्ट्र के विकास में बाधा है । आक्रमण से किसी भी राष्ट्र का हित नहीं सध सकता। ___ बांडुंग सम्मेलन में इन्हीं तथ्यों पर विस्तार से चर्चा हुई। सम्मेलन में स्वीकृत सिद्धान्तों को उन्तीस राष्ट्रों की सहमति मिली। अभी हाल ही में शिमला शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान में जो समझौता हुआ है उसमें भी आक्रामक नीति का बहिष्कार किया गया है । इस समझौते में भारत को अपने स्वार्थों का बलिदान करना पड़ा है, पर शान्ति स्थापना के लिए इसके अतिरिक्त कोई मार्ग ही नहीं था । समझौता-वार्ता के कुछ तथ्य ये हैं.-- (क) दोनों देश समझौते, अच्छे पड़ोसीपन और स्थायी शान्ति के लिए वायदा करते हैं कि शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व, एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता, प्रभुत्वसम्पन्नता तथा बराबरी व दोनों के लाभ के आधार पर आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के उसूलों पर काम करेंगे। (ख) वे एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीयता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और समानता का सदैव सम्मान करेंगे । (ग) दोनों देश संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा-पत्र के अनुरूप एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता या राजनैतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध शक्ति का प्रदर्शन नहीं करेंगे और न ही ऐसा करने की धमकी देंगे । ___ इन तथ्यों के आधार पर सिद्ध होता है कि किसी भी क्षेत्र में आक्रामक नीति काम्य नहीं है। सहअस्तित्व की भावना से आक्रान्ता मनोभावों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003066
Book TitleAhimsa Vyakti aur Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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