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११. समाज अध्यात्म से अनुप्राणित हो
पूज्य गुरुदेव ने आपको तेरापंथ धर्म संघ के सर्वोच्च पद पर अप्रत्याशित रूप से प्रतिष्ठित कर दिया। संभव है, उस समय आप स्तब्ध रह गए हों। किन्तु जब आपको इस संबंध में एकान्त क्षणों में कुछ सोचने का अवकाश मिला, इस घटना की आपने मन पर
पहली प्रतिक्रिया क्या हुई ? - इस नियुक्ति के बाद मेरे मन में यह आया कि गुरुदेव ने मुझे
समाज के उस स्थान पर प्रतिष्ठित किया है, जहां व्यक्ति व्यक्ति नहीं रहकर स्वयं समाज बन जाता है। उसे पूरे समाज को आत्मसात् करना होता है। उसके लिए न केवल समाज को साथ लेकर ही चलने की अपेक्षा है, अपितु उसके साथ तादात्म्य स्थापित कर चलना जरूरी है। मैं अकेलेपन की स्थिति में अधिक रस लेता था, पर यह न नियति को इष्ट था और न स्वयं गुरुदेव को ही। इसलिए मैं एक व्यक्ति से समाज में रूपान्तरित हो गया। इस भूमिका पर आरूढ़ होने के कारण गुरुदेव ने जो गुरुतर दायित्व मुझे सौंपा है, उसके निर्वाह हेतु मैं अधिक शक्ति-स्रोतों की आवश्यकता अनुभव करता हूं। गुरुदेव के आशीर्वाद, अपनी अध्यात्म-साधना और समस्त समाज की सद्भावना, इसी त्रयी के योग से मैं उन शक्ति-स्रोतों को उद्घाटित करूं, यह मेरी पहली प्रतिक्रिया है। यह दस-बारह दिनों का समय आपको कैसा लगा? क्या आप अपने
भीतर कोई परिवर्तन अनुभव कर रहे हैं? ० जहां तक मेरे अन्तःकरण या भीतरी व्यक्तित्व का प्रश्न है, वहां तक
मुझे अस्वाभाविक जैसा कुछ भी नहीं लगता, क्योंकि मेरा मन साधना से इतना भावित है कि उस पर किसी प्रकार के भार का
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