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गुरु का विश्वास : उज्ज्वल भविष्य का उच्छावास ५३ में एक कार्यक्रम बनाएं और जो कीर्तिमान हमारे धर्मसंघ ने स्थापित किया है, उस कीर्तिमान को स्थायी रखें और उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करें। अध्यात्म की साधना ___ अनुशासन भी हो, शिक्षा भी हो और बौद्धिकता भी हो, किन्तु अध्यात्म की साधना न हो तो बौद्धिकता लड़ाने वाली हो सकती है। आप इस बात को कभी न भूलें। तर्क आदमी को लड़ाता भी है, यह हमें ध्यान में रखना चाहिए। अध्यात्म की साधना हमारे लिए बहुत जरूरी है। शिक्षा, अनुशासन और अध्यात्म, इन तीनों दिशाओं में हमें प्रगति करनी है।
हम कठिनाइयों की ओर भी थोड़ा ध्यान दें। सबसे बड़ी कठिनाई है स्वास्थ्य की। यह बहुत चिन्तन का प्रश्न आज हमारे सामने है। साधुओं में और विशेषकर साध्वियों में यह स्वास्थ्य का प्रश्न कुछ जटिल बनता जा रहा है। इससे बड़ी बाधाएं आती हैं। पहली बाधा तो स्वयं के जीवन में आती है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र की जो आराधना होनी चाहिए, वह स्वास्थ्य के अभाव में नहीं हो पाती। दूसरी बाधा होती है संघीय प्रगति में। गुरुदेव जहां भेजना चाहते हैं, वहां नहीं पहुंच पाते। जो कार्य करवाना चाहते हैं, वह नहीं हो पाता। यह बहुत बड़ा प्रश्न है। इस पर सबको विचार करना है। मैं प्रार्थना करता हूं गुरुदेव से कि इस पर भी ध्यान दें और कुछ ऐसे रास्ते खोजें, जिससे साधु-साध्वी समुदाय का स्वास्थ्य ठीक हो सके। मानसिक स्वास्थ्य काफी अच्छा है। गुरुदेव ने प्रायः सभी साधुओं को अपने पास बुलाया और उनके स्वास्थ्य आदि के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की। मैंने देखा कि साधु बहुत उल्लसित थे। इस बार मानसिक स्वास्थ्य का गुरुदेव ने बहुत सुन्दर प्रयोग किया। ____ मैं एक बार पुनः गुरुदेव के चरणों में एक प्रार्थना प्रस्तुत करता हूं--पूज्य गुरुदेव! यह आत्मा का अद्वैत सदा बना रहे और आपका मार्ग-दर्शन मुझे मिलता रहे। मैं अपने जीवन के इस दृढ़ संकल्प को फिर दोहराता हूं कि आपका जो भी इंगित होगा, वह मेरे लिए बड़े-से-बड़ा व्रत होगा और उस व्रत में सदा मैं अपने जीवन को खपाता रहूंगा ।*
___ * युवाचार्य पद पर नियुक्त होने के बाद साधु-साध्वियों की परिषद् में प्रदत्त वक्तव्य
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