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५२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
का सबसे बड़ा सूत्र है अनुशासन । गुरुदेव अनुशासन के प्रति जागरूक हैं। इसलिए हम संभावना करते हैं कि गुरुदेव के द्वारा संघ का बहुत बड़ा विकास हो सकेगा, भारतीय चिन्तन का विकास हो सकेगा, जैनधर्म का विकास हो सकेगा । सबसे पहली हमारी शक्ति है अनुशासन । इसे हम कभी गौण नहीं करें। तेरापंथ की आज जो कर्मजा शक्ति सारे विश्व के सामने प्रस्तुत हो रही है और आज बड़े-बड़े समाज आचार्य तुलसी का लोहा मान रहे हैं, उसका आधार क्या है? यही अनुशासन है । एक अनुशासन में इतने योग्य और क्षमताशील साधु-साध्वियों का होना, मैं बड़े सौभाग्य की बात मानता हूं। डेढ़ हजार वर्ष के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि एक आचार्य के नेतृत्व में ऐसे सशक्त साधु-साध्वियां हों । किसी आचार्य के पास पांच-दस हो सकते हैं । किन्तु जहां पचासों-पचासों साधु-साध्वियां सक्षम हों, यह किसी विरले, भाग्यशाली आचार्य को ही उपलब्ध हो सकता है । यह हमारा गौरव है 1 इसका मूल आधार है अनुशासन । गुरुदेव ने समय-समय पर जो निर्देश दिए और साधु-साध्वियों ने तत्परता से उनका पालन किया, परिणामतः आज हमारा धर्म-संघ बहुत शक्तिशाली बन गया ।
शिक्षा
दूसरी बात, विकास के लिए बहुत जरूरी है शिक्षा । अनुशासन हो और बौद्धिक विकास न हो, शिक्षा न हो, तो काम बहुत आगे नहीं बढ़ सकता। हम एक साथ रह सकते हैं, अच्छे ढंग से रह सकते हैं, पर दूसरों को जो देना चाहते हैं, वह नहीं दे सकते। समाज के प्रति और एक विशाल समाज के प्रति हमारा कोई अनुदान नहीं हो सकता। वह तब हो सकता है, जब हमारा बौद्धिक विकास हो । हमारे संघ ने गुरुदेव
नेतृत्व में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है, पर एक बात साथ-साथ यह भी कहना चाहता हूं कि जो प्रगति हो रही थी, उसमें थोड़ा-थोड़ा अवरोध भी आया है। प्रगति का युग वह था, जब मुनि तुलसी हमें पढ़ाते थे और हम पढ़ते थे । वह क्रम बराबर चलता तो आज संघ का रूप ही कुछ दूसरा होता । किन्तु क्या कहूं, वैसा नहीं हो सका। मुनि तुलसी मुनि नहीं रह सके और मुनि नथमल, मुनि बुद्धमल्ल विद्यार्थी नहीं रह सके। सब कुछ बदल गया । हम लोग शिक्षा के क्षेत्र
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