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गुरु का विश्वास : उज्ज्वल भविष्य का उच्छ्रावास ५१.
व्यक्ति को कभी मुख्यता नहीं दी जा सकती । जहां गौण बातें मुख्य बन जाती हैं तथा मुख्य बातें गौण बन जाती हैं वहां बड़ी कठिनाइयां और समस्याएं पैदा हो जाती हैं । मैं अपनी ओर से स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि कोई भी यह अनुभव न करे कि हम तो संबंधी हैं और हम संबंधी नहीं हैं । मेरे लिए संबंध की कोई भेदरेखा नहीं है । मेरे लिए सब उतने ही निजी और मेरे अपने हैं, जो गुरुदेव की, संघ की मर्यादा एवं अनुशासन में दक्ष हैं ।
कृतज्ञता
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अब मैं उन लोगों की स्मृति कर लेना चाहता हूं जिनका मेरे जीवन में योगदान रहा है । सर्वप्रथम पूज्य कालूगणी के चरणों में अपनी संपूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति समर्पित करता हूं, जिनका वरदहस्त मेरे सिर पर टिका और भाग्य का सूर्योदय हुआ । उनके प्रति कृतज्ञ होना यह कोई मेरा ही व्रत नहीं है, मेरे गुरु का भी यही व्रत है । गुरुदेव के सामने जब भी कोई स्थिति होती है, तब यही व्रत होता है ।
महामुनि मंत्री मुनि की स्मृति भी करना चाहता हूं। उनके शिक्षापदों ने मुझे बहुत अवकाश दिया संभलने का ।
स्वर्गीय भाईजी महाराज चम्पालालजी स्वामी को नहीं भूल सकता । उन्होंने बचपन से ही हमारे साथ सारणा वारणा का प्रयोग किया और इन वर्षों में तो उनका इतना अटूट स्नेह मुझे मिला कि जिसकी शायद पहले कल्पना भी नहीं थी । वे बहुत बार कहते - 'यह पांचवां आरा है अगर चौथा होता तो केवली हो जाते। न जाने कितनी बार इसको दोहराते ।'
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स्वर्गीया माताजी बालूजी ने गुरुदेव के प्रति समर्पित रहने में पूरा योग दिया। वे हमेशा यही कहतीं कि गुरुदेव की दृष्टि को हमेशा ध्यान में रखना। गुरुदेव की दृष्टि के प्रतिकूल कभी कोई कार्य मत करना । यह उनका एक सूत्र था ।
प्रगति और विकास के लिए
अब मैं अपनी अंतिम बात करना चाहता हूं। संघ की प्रगति और विकास के लिए हमें क्या करना है? हमारे संघ की प्रगति और विकास
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