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४८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
चला था, चल रहा हूं और पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में इसी प्रकार चलता रहूंगा।
विश्वास की भूमिका
जिस महान् गुरु ने मेरे जीवन का निर्माण किया, मुझे अपना विश्वास दिया और विश्वास तथा श्रद्धा ली, उस विश्वास को अब चरम बिन्दु पर सब लोगों के सामने प्रस्तुत कर दिया, उसके प्रति कुछ भी समर्पित करूं, बहुत तुच्छ बात होगी । उदयपुर चातुर्मास के बाद एक दिन आत्मा (मेवाड़ का एक छोटा-सा गांव ) में पूज्य गुरुदेव ने मुझे अपना कुछ अंतरंग काम सौंपा। आपने कहा - २७ वर्षों के बाद आज मैं अपना कुछ अंतरंग काम पहली बार तुम्हें सौंप रहा हूं । इस बार गुरुदेव ने मुझे वह सब कुछ सौंप दिया, जो कुछ सौंपा जा सकता है ।
मैं सोचता हूं कि मैंने कभी कुछ नहीं मांगा। अपने लिए मैंने कभी कोई मांग नहीं रखी। इस बात की सचाई स्वयं गुरुदेव जानते हैं, और भी जानने वाले जानते हैं कि कभी मेरी कोई मांग नहीं थी । आप ज्ञान, दर्शन, चरित्र की बात छोड़ दीजिए। मैं उसकी बात नहीं कर रहा हूं । वह तो जीवन की शाश्वत मांग है, किन्तु किसी वस्तु की कभी कोई मांग नहीं की । केवल एक ही मांग की थी कि मुझे आचार्य तुलसी का विश्वास मिलता रहे, उपलब्ध रहे। बस इतनी मांग थी। वह मेरी मांग पूरी हुई। आचार्य तुलसी मुझे उपलब्ध थे, उपलब्ध और हो गए। जब आचार्य तुलसी मुझे स्वयं उपलब्ध हो गए तो उनका जो कुछ था, वह मुझे स्वयं उपलब्ध हो गया । यह मेरी कोई मांग नहीं थी ।
इस अवसर पर मैं क्या कहूं? तीन-चार दिनों से पता नहीं मेरी स्थिति क्या बन गई है? शायद कुछ बोल नहीं पाता । बोलता हूं तो भाव-विभोर हो उठता हूं । गुरुदेव के चरणों में व्यवहारतः, वास्तव में तो उनकी आत्मा में, किन्तु व्यवहार की भाषा में कहूं तो उनके चरणों में फिर अपने सर्वस्व को समर्पित करता हूं और यह आशीर्वाद मांगता हूं कि गुरुदेव ! आपका आशीर्वाद मुझे निरन्तर उपलब्ध होता रहे । आपने जिस प्रकार मेरे भाग्य का निर्माण किया, उसकी पूरी सफलता, सार-संभाल सब कुछ आपके कर कमलों द्वारा निरंतर होती रहे ।
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