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________________ गुरु का विश्वास : उज्ज्वल भविष्य का उच्छ्रावास ४६ गुरु का गौरव पूज्य गुरुदेव ने मुझ पर असीम विश्वास किया है। एक छोटे से बालक को, जिसे एक दिन अपने हाथों में लिया था, आज उसी को अपने बराबर बिठा दिया। मेरे जैसा छोटा-सा बच्चा और इतने महान् आचार्य ! मैं तो इनके सदा चरणों में रहने वाला था और इन्होंने हाथ पकड़कर अपने बराबर बैठा दिया । मैंने प्रार्थना की- आप और कुछ कहें, किन्तु बराबर बैठने के लिए न कहें, पर आखिर निर्देश निर्देश होता है, आदेश आदेश होता है। न चाहते हुए भी मुझे वैसा करना पड़ा। यह गुरुदेव का गौरव, उनकी गुरुता, महानता और विशालता है कि जिस अबोध बालक को उन्होंने अपने हाथों में लिया और एक दिन उसी बच्चे को अपने बराबर बना दिया और बिठा दिया। इस महानता के प्रति मैं कोई भावना व्यक्त करूं, मेरे पास कोई शब्द नहीं है । गुरुदेव ने जो विश्वास किया, जो अनुग्रह किया, जो आशीर्वाद दिया, उसे समूचे श्रमण-श्रमणी संघ ने जिस प्रकार झेला और मुझे आदर दिया, मेरे प्रति श्रद्धा, निष्ठा और भावना व्यक्त की, उसके लिए मैं बहुत कृतज्ञ हूं और सबके प्रति आभार प्रदर्शित करता हूं । प्रथम क्षण में ही आप लोगों ने मेरे प्रति जो सद्भावना प्रकट की है, वह भाग्य से ही मिल सकती है या गुरु के आशीर्वाद से ही मिल सकती है । मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरे गुरु का आशीर्वाद और आप सब लोगों की सद्भावना, दोनों मुझे एक साथ उपलब्ध हैं। मैं सचमुच गौरवशाली हूं, भाग्यशाली हूं। नामातीत मैं अपने भाग्य की क्या प्रशंसा करूं और आप सबके प्रति गौरव की क्या बात कहूं? मैं केवल अपने कर्तव्य को प्रकट कर देना चाहता हूं कि गुरुदेव ने जो सेवा का कार्य मुझे सौंपा है, संघ के प्रति मुझे जो सेवा का उत्तरदायित्व सौंपा है, उस कार्य के निर्वाह के लिए मैं अपने आपको समर्पित करता हूं । गुरुदेव के निर्देशों के अनुसार संघ की प्रगति के लिए, संघ के विकास के लिए मैं अपनी सारी प्रज्ञा को समर्पित करता हूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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