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________________ गुरु का विश्वास : उज्ज्वल भविष्य का उच्छश्वास ४७ है कि गुरुदेव! मैं सदा अभिन्न रहा हूं और इस अर्थ में ही सौभाग्यशाली होऊंगा कि यह अभिन्नता सदैव बनी रहे, शाश्वत बनी रहे। कहीं भी भेद की रेखा सामने न आए। मानसिक अभेद एक बार भिवानी में गुरुदेव ने कहा था-इतने लम्बे जीवन में एक साथ रहना और कभी मानसिक भेद न होना, इसे मैं बहुत बड़ी बात मानता हूं। गुरुदेव की सेवा में रहते हुए चार दशकों से भी अधिक समय बीत गया। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि कहीं, कोई मन में भेदरेखा आयी हो। मैं कुछ बातें सुनता रहा हूं, जिन्हें आज दोहराना जरूरी समझता हूं। बहुत लोग कहते हैं मुनि नथमल को कहने का कोई अर्थ ही नहीं है। वे तो केवल गुरुदेव की हां में हां मिला देंगे। उनको कहने या न कहने का कोई अर्थ नहीं है। इससे भी कुछ कटु बातें मैं सुनता रहा हूं-कुछ लोग कहते, इनको कहने का अर्थ क्या है? गुरुदेव कहेंगे कि शिला दो हाथ बढ़ गई तो यह कहेंगे कि हां। गुरुदेव कहेंगे कि शिला दो हाथ घट गई तो कहेंगे, हां। मैं वैसे ही नहीं कह रहा हैं। मैं बराबर ऐसी बातें सुनता रहा हूं। पर मैंने कभी इन बातों की सफाई देने का प्रयत्न नहीं किया। मन में भी नहीं आया कि क्या कहा जा रहा है? क्योंकि मैं अपने आप में स्पष्ट था। मैं मानता था कि मेरा गुरु कितना यथार्थवादी है कि कभी ऐसी बात मुझसे कहलाता ही नहीं। कल्पना करने वाले कल्पना करते रहे। यथार्थ कुछ और रहे, कल्पना कुछ और चलती रहे तो उस कल्पना के लिए सफाई या साक्ष्य की कोई जरूरत नहीं होती। हां, मैं एक बात निश्चित कहता रहा कि कोई मेरा चाहे कितना ही निकट का क्यों न हो, मैं सबसे पहले पूज्य गुरुदेव को प्रसन्न रखना चाहता हूं, फिर कोई बाद में दूसरा हो सकता है। मुझसे कोई यह आशा न करे कि मैं दूसरों की प्रसन्नता के लिए इस प्रसन्नता को तराजू पर रख दूं। यह अगर आशा है तो सर्वथा निराशा होगी। यह एक सचाई है और सभी लोग इसे जानते हैं। जो व्यक्ति एक सिद्धान्त को लेकर चलता है, उसके सामने ऐसी कठिनाइयां आती हैं। किन्तु कभी मेरी धृति ने मुझे धोखा नहीं दिया। मैं जिस संकल्प को लेकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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