________________
विकास महोत्सव ३५
आधार की जरूरत है । वह आधारभूमि बन सकता है अध्यात्म | सम्प्रदाय, उपासना, क्रियाकाण्ड, इनमें मतभेद और विवाद हो सकते हैं । अध्यात्म अपनी अनुभूति है, स्वयं की चेतना का जागरण है, इसलिए वह सब विवादों से परे है । इस वैज्ञानिक युग में वही सर्वमान्य धर्म बन सकता है। आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रारंभ हुआ। वह अपनी आध्यात्मिकता के कारण सर्वमान्य हो रहा है ।
•
लक्ष्य बना - शिक्षा की प्रणाली सर्वांगीण होनी चाहिए । जीवन-विज्ञान की योजना बनी। कार्यारंभ हो गया । शिक्षा के क्षेत्र में उसका मूल्यांकन किया जा रहा है। दिल्ली, बोकारो जैसे क्षेत्रों में उसके प्रशिक्षण और प्रयोग सघन बन रहे हैं ।
• लक्ष्य बना - अहिंसा का प्रशिक्षण होना चाहिए। केवल उपदेश और प्रचार से उसका विकास नहीं होता । अहिंसा प्रशिक्षण की प्रविधि तैयार की गई और यत्र-तत्र उसका प्रयोग भी किया गया ।
• लक्ष्य बना - जैन विद्या के अध्ययन, शोध, अनुसधान और प्रयोग का कार्य विधिवत् प्रारंभ होना चाहिए । चिन्तन का परिणाम आया । जैन विश्व भारती की स्थापना हुई । उसका उत्तर चरण है- जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) ।
पूज्य गुरुदेव ने अनेक स्वप्न लिए । हर स्वप्न लक्ष्य बना और हर लक्ष्य ने अपनी पूर्ति के संसाधन जुटाए । फलस्वरूप ज्ञान, दर्शन और चारित्रोन्मुखी प्रवृत्तियों का विस्तार हुआ ।
वि. सं. २०५० माघ शुक्ला सप्तमी ( १८ फरवरी १६६४ ) के दिन आपने आचार्यपद का विसर्जन कर मुझे आचार्यपद पर नियुक्त किया । वि. सं. २०५१ का चातुर्मासिक प्रवास दिल्ली में हुआ । एक दिन गुरुदेव ने कहा - इस वर्ष मेरा पट्टोत्सव नहीं मनाया जाएगा। मैं अपने आचार्यपद का विसर्जन कर चुका हूं, फिर पट्टोत्सव क्यों मनाया जाए ? गुरुदेव की यह बात हृदयंगम नहीं हुई । मेरी भावना थी - पट्टोत्सव पूर्ववत् मनाया जाए किन्तु गुरुदेव का बार-बार उपरोध रहा - पट्टोत्सव न मनाया जाए । इस प्रतिवादी विचार से एक संवादिता का जन्म हुआ। मैंने निर्णय किया - पट्टोत्सव को नया रूप दिया जाए, जिससे गुरुदेव की भावना और हमारी भावना - दोनों के मिश्रण से नई प्रजाति बन जाए। वह संवादी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org