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५. पदाभिषेक : शुभ भविष्य का मंगलपाठ
आचार्य-पद के विसर्जन और आपके उत्तराधिकार की घोषणा तेरापंथ संघ के लिए अप्रत्याशित घटना है। अचानक दिया गया यह उत्तराधिकार आपको कैसा लगा? नए दायित्व की स्वीकृति के समय आपके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई? उत्तराधिकार की कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं हुई। वह युवाचार्य की नियुक्ति के साथ दिया जा चुका था। आचार्य-पद का विसर्जन और आचार्य-पद की नियुक्ति सचमुच मन को आश्चर्य एवं नवीन प्रस्थान से उत्पन्न प्रश्नों से आन्दोलित कर रहे थे। वास्तव में वह क्षण चिन्तन का नहीं, अनुभूति का था, इसलिए 'कैसा लगा' इस प्रश्न का उत्तर देना सरल नहीं है। अब तक तेरापंथ की अनुशासना, व्यवस्था और परंपरा एक आचार्य से जुड़ी रही। अब एक ओर आपके सामने आपके गुरु हैं, दूसरी ओर आपको आचार्य बनकर शासना करनी है। ऐसे क्षणों में क्या
अंतर्द्वन्द्व नहीं उभरता? - एक आचार्य की परंपरा हमारे संघ की अक्षुण्ण परम्परा है। उसमें
न कोई अन्तर आया है और न कोई अन्तर आने वाला है। उससे होने वाले लाभ पूरे संघ के मानस को आकृष्ट किए हुए हैं इसलिए उसे बदलने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जल तालाब का हो या बरसते हुए बादल का, दोनों अन्तरिक्ष जल हैं। वर्तमान आचार्य अपने पूर्ववर्ती आचार्य की आज्ञा को शिरोधार्य करता है। यह तेरापंथ का ध्रुव सिद्धान्त है। अन्तर इतना है कि पूर्ववर्ती आचार्य को तालाब का जल मिला और मुझे बरसते हुए मेघ का जल मिल रहा है। यह सौभाग्य का विषय है, अन्तर्द्वन्द्व का नहीं। पूर्ववर्ती
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