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________________ २४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ आचार्य के पथदर्शन को वर्तमान आचार्य साक्षात् प्राप्त कर सके, इस विरल घटना को इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ कहा जा सकता है । आचार्यत्व की घोषणा के बाद और दायित्व निर्वहन के क्षणों में आपकी अनुभूतियां क्या रहीं ? गुरुदेव ने मुझे बार-बार अपने दायित्व के प्रति सजग रहने का संदेश दिया। मैंने अनुभव किया कि गुरु की उपस्थिति में दायित्व का निर्वाह करने वाले आचार्य को अधिक जागरूक और अधिक सहिष्णु रहने की अपेक्षा है । जयाचार्य ने आचार्य पद का विसर्जन नहीं किया किंतु वे अपने युवाचार्य मघवा को दायित्व सौंपकर गण- चिन्ता से प्रायः मुक्त हो गए थे। वर्तमान स्थिति उस घटना का अग्रिम चरण है । कितना अच्छा हो, मघवा की अनुभूति मेरी अनुभूति में संक्रांत हो जाए । O N D गुरुदेव तुलसी ने आपको अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना है। आप अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं? मुझे गुरुदेव का शिष्य होने का सौभाग्य मिला, इसे मैं जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूं । शिष्यत्व के साथ-साथ उनका अनुग्रह, सान्निध्य और प्रेरणा का सुयोग मिला, ये सब इसी महान् उपलब्धि की रश्मियां हैं गणाधिपति तुलसी ने एक संगोष्ठी में कहा था - 'मैं आचार्य महाप्रज्ञ को अपने जीवन काल में अपने से अधिक यशस्वी आचार्य के रूप में देखना चाहता हूं।' गुरु के ये शब्द अमिट विश्वास के प्रतीक हैं। गुरु के इस प्रबल विश्वास के पीछे आपकी साधना के कौन से मानक रहे हैं? O मैं भाग्यवादी नहीं हूं, किन्तु भाग्य की सत्ता को अस्वीकार भी नहीं करता। मैं पुरुषार्थ में विश्वास करता हूं, किन्तु विवेकशून्य पुरुषार्थ में विश्वास नहीं करता । मेरा सर्वाधिक विश्वास आत्मा की विशुद्धि में है, लेश्या की विशुद्धि या भाव विशुद्धि में है । उस भावविशुद्धि ने गुरुदेव के मन में विश्वास के बीज बोए । कोई भी छद्मस्थ मनुष्य औदयिक भाव से मुक्त नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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