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३४ वर्ष
आश्चर्य के पीछे छिपा महान् आश्चर्य २१ आचार्य बनने का अवस्थामान इस प्रकार है : आचार्य
किस आयु में आचार्यश्री भिक्षु आचार्यश्री भारमलजी आचार्यश्री रायचन्दजी
३१ वर्ष आचार्यश्री जीतमलजी
४८ वर्ष आचार्यश्री मघराजजी
४१ वर्ष आचार्यश्री माणकलालजी
३७ वर्ष आचार्यश्री डालचन्दजी
४५ वर्ष आचार्यश्री कालगणीजी
३३ वर्ष आचार्यश्री तुलसी
२२ वर्ष मेरी आचार्य पद पर नियुक्ति ७४ वर्ष की अवस्था में (१८ फरवरी १६६४) हुई।
कोई भी आचार्य इतनी प्रौढ़ अवस्था में न युवाचार्य बना और न आचार्य बना। यह एक आश्चर्य है। इस आश्चर्य के पीछे एक रहस्य है और उस रहस्य के पीछे छिपा हुआ है एक महान् आश्चर्य। किसी भी आचार्य ने अपने उत्तराधिकारी के निर्माण में इतना समय नहीं लगाया जितना कि पूज्य गुरुदेव ने लगाया। किसी भी आचार्य के निर्माण-कौशल की इतनी कसौटी नहीं हुई, जितनी पूज्य गुरुदेव के निर्माण कौशल की हुई है। किसी भी आचार्य के निर्माण कौशल को इतनी ख्याति नहीं मिली, जितनी पूज्य गुरुदेव को मिली है। वर्तमान के वैज्ञानिक युग में प्रतिभा को तराशने की जितनी जरूरत है, उतनी शायद अतीत में नहीं रही। कोई नियति का योग था कि एक ऐसा व्यक्ति हाथ में आ गया, जो गांव में जन्मा हुआ, प्रकृति से सरल, जिसने कभी स्कूल का दरवाजा नहीं देखा और जो अंतरिक्ष का जल ही पीता रहा। कितना कठिन था ऐसे व्यक्ति की प्रतिभा का निर्माण। शायद ज्ञात-अज्ञात रूप में एक संकल्प बन गया कि यह कार्य कठिन है, फिर भी मुझे करना है। कार्य प्रारंभ हो गया। कठिनाइयां आती गईं। फिर भी निर्माण के हाथ अपनी छेनी को चलाते रहे। आखिर एक दिन अपने निर्माण कौशल से जनता
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