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________________ ४. आश्चर्य के पीछे छिपा महान् आश्चर्य आश्चर्य और अति आश्चर्य। एक आचार्य स्वयं अपने उत्तराधिकारी के आचार्य पद का अभिषेक करे। आश्चर्य इसलिए कि तेरापंथ की आचार्य परंपरा में यह पहला घटना प्रसंग है। आश्चर्य इसलिए कि जैन परंपरा में भी ऐसा प्रसंग जानने को नहीं मिला कि एक समर्थ आचार्य ने अपने आचार्य पद का विसर्जन कर अपने शिष्य में आचार्य पद की प्रतिष्ठा की हो। यह विरल प्रसंग है, इसलिए आश्चर्य का विषय बन सकता है। किन्तु मेरी दृष्टि में इससे भी बड़ा एक आश्चर्य है, जिस पर शायद जन-समुदाय का ध्यान नहीं गया। मुझसे पूर्व तेरापंथ की परंपरा में अब तक युवाचार्य की छह नियुक्तियां हुई हैं। उनका अवस्थामान इस प्रकार है : युवाचार्य किस आयु में आचार्यश्री भारमलजी २६ वर्ष आचार्यश्री ऋषिरायजी ३० वर्ष आचार्यश्री जीतमलजी ३३ वर्ष आचार्यश्री मघराजजी २३ वर्ष आचार्यश्री माणकलालजी ३७ वर्ष आचार्यश्री तुलसी २२ वर्ष पूज्य कालूगणी की युवाचार्य के रूप में साक्षात् नियुक्ति नहीं हुई। डालगणी ने उत्तराधिकार का पत्र लिखा। उस समय पूज्य कालूगणी की अवस्था ३३ वर्ष की थी। मेरी युवाचार्य के पद पर नियुक्ति हुई, उस समय मैं ५८ वर्ष का हो चुका था। सबसे बड़ी अवस्था में मैं युवाचार्य बना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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