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________________ विसर्जन का महामस्तकाभिषेक करें ११ नहीं आयेगी। आचार-निष्ठा, अध्यात्म-निष्ठा और मर्यादा की निष्ठा बहुत जरूरी है। किन्तु इतना ही हम पर्याप्त नहीं मानते, इनका निरन्तर विकास भी आवश्यक है। जो संघ विकासोन्मुखी नहीं होता, नये युग के साथ चरण बढ़ाने की जिसमें क्षमता नहीं होती, अपने लिए वह भले ही ठीक हो, किन्तु दुनिया के लिए किसी विशेष काम का नहीं होता। चिरजीवी है शिष्यत्व हमारे सामने दो आयाम आ गए-एक मर्यादा का महोत्सव और दूसरा विकास का महोत्सव। पूज्य गुरुदेव ने कहा-'अब मेरा पट्टोत्सव न मनाया जाये।' आपकी इस बात को हम सबने स्वीकार कर लिया। आखिर गुरु की आज्ञा है। आपने मुझे आचार्य बना दिया। अब मैं आप लोगों के लिए आचार्य हूं, किन्तु गुरुदेव के लिए तो शिष्य ही हूं। मैं प्रार्थना करता था, सुझाव देता था और गुरुदेव स्वीकृति दे देते थे। अब मैं प्रार्थना करूंगा कि ऐसा करना है, गुरुदेव अपनी 'हां' कर देंगे। हां तो वहां से लेनी होगी। जो उत्तरवर्ती आचार्य अपने गुरु के प्रति, अपने आचार्य के प्रति अच्छा शिष्य बन कर रहेगा, वही अच्छा आचार्य बन सकता है। मैंने बहुत पहले एक पद्य पढ़ा था और आज तक उस पथ पर चलता रहा हूं-सीसस्स हुंति सीसा न हुंति सीसा असीसस्स-जो शिष्य बनना नहीं जानता, उसका कोई शिष्य नहीं होता। मैंने शिष्य बनना सीखा है। आचार्य बनना, गुरु बनना तो नहीं सीखा था, वह तो सिखा दिया गया, किन्तु शिष्य बनना जरूर सीखा है। मेरा वह शिष्यत्व चिरजीवी है, चिरस्थायी है। भिक्षुस्वामी से लेकर वर्तमान गणाधिपति तक सबके प्रति समान रूप से मेरा वही शिष्यभाव बना रहे। मेरी सफलता का सबसे बड़ा मंत्र यही है। अच्छा आचार्य बनूं आचार्य बनने के बाद कई पत्रकारों ने पूछा- 'अब आपका क्या कार्यक्रम होगा? आपकी नीति क्या होगी? आप क्या नया करना चाहेंगे? मैंने उनकी बात का एक वाक्य में उत्तर दिया और राष्ट्रपति कैनेडी की भाषा में दिया। जब कैनेडी अमेरिका के राष्ट्रपति बने तब उनसे पूछा गया-'अब आपकी नीति क्या होगी? अब आप क्या करना चाहेंगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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