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१२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
अमेरिका और पूरे विश्व में? उन्होंने दो पंक्तियों में सीधा-साधा उत्तर दिया- 'मैं और कुछ नहीं करना चाहता, मेरी कोशिश यही रहेगी कि मैं अमेरिका का अच्छा राष्ट्रपति बनूं।'
मैं भी कहना चाहता हूं कि मैं अपने गुरु का अच्छा शिष्य बना रहूं और अपने धर्मसंघ का अच्छा आचार्य बनूं, इसके अतिरिक्त मेरी और कोई इच्छा नहीं है, मैं कुछ नहीं चाहता। इससे अधिक चाहत की और कोई बात ही नहीं है ।
धर्मसंघ की दो भुजाएं
गुरुदेव ने पट्टोत्सव न मनाने की बात कही । अब ऐसा कैसे हो सकता है कि पट्टोत्सव न मनाया जाये। उस समय मेरे मन में एक बात आई कि पट्टोत्सव मनाया जाये और स्थायी रूप से मनाया जाये। इसी चिन्तन के आधार पर उसे विकास - महोत्सव का नाम दिया गया । यह विकास - महोत्सव पूज्य गुरुदेव के पट्टोत्सव को तो प्रतिबिम्बित करेगा ही, शेष आठ आचार्यों के पट्टोत्सव भी इसमें समाहित हो जाएंगे और इस प्रकार विकास - महोत्सव तेरापंथ के नौ आचार्यों के पट्टोत्सव का महोत्सव होगा। यह हमारे लिए बड़े गौरव की बात है । मैं मानता हूं कि जो व्यक्ति, जो समाज और जो संघ अकृतज्ञ है, जिसमें कृतज्ञता नहीं होती, वह कभी आगे नहीं बढ़ सकता । वह आगे बढ़ेगा भी तो केकड़ा-नीति के आधार पर आगे बढ़ेगा । चन्दनमलजी बैद ने कल कहा - 'आप दोनों में तालमेल बहुत है ।' शायद ऐसा कहते हुए वे भूल गए कि तालमेल वहां होता है, जहां दो हों । तालमेल हमेशा दो व्यक्तियों के बीच होता है। जहां एकत्व है वहां तालमेल का प्रश्न ही नहीं आता ।
इस वर्ष सघन कार्य करने हेतु विकास - महोत्सव की कल्पना की गई है । कल्पना बहुत बड़ी है | आज मर्यादा - महोत्सव के अवसर पर उस पूरी कल्पना को प्रस्तुत करूं, संभव नहीं है। अभी उस पर बहुत चिंतन-मंथन चल रहा है और लम्बे समय तक चलेगा, तब उसकी पूरी तस्वीर सामने आयेगी। एक मर्यादा-महोत्सव और दूसरा इसका सहोदर बन जायेगा विकास - महोत्सव । ये दोनों हमारे धर्मसंघ की दो भुजाएं होंगी। संघ इससे तेजस्वी और ओजस्वी बनेगा ।
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