________________
४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ कार्यक्रम। गुरुदेव ने अपने श्रम से इतना विस्तार किया धर्मसंघ का कि आज पूरे देश में लगभग चार सौ तेरापंथी सभाएं हैं। डेढ़ सौ से अधिक युवक परिषदें हैं, दो सौ इक्यावन महिला मण्डल की संस्थाएं हैं। पचास से अधिक अणुव्रत समितियां, अणुव्रत शिक्षक संसद के डेढ़ लाख से अधिक सदस्य, देश और विदेश में स्थापित प्रेक्षाध्यान केन्द्र, अहिंसा प्रशिक्षण केन्द्र, जीवन विज्ञान अकादमी, और प्रायः हर क्षेत्र में चल रही ज्ञानशालाएं-इतने सारे कार्यक्रम आपके दिए हुए चल रहे हैं। मैं कहना चाहता हूं कि गुरुदेव ने संभवतः और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी। यह कैसे कहूं कि ध्यान नहीं दिया किन्तु संकोच पूर्वक कहूंगा कि और ध्यान देते तथा मुझसे ज्यादा किसी सक्षम को ढूंढ़ते तो कितना अच्छा होता! दुबला-पतला हूं। मेरे दुर्बल कन्धों पर इतना भार रखते समय गुरुदेव ने कुछ सोचा तो होगा ही। नहीं सोचा होगा, यह मैं कैसे मान लूं? जरूर सोचा होगा। किन्तु सोचता हूं कि कितना अच्छा होता कि किसी मजबूत कन्धे वाले को गुरुदेव चुनते। पर आखिर गुरु गुरु होता है। जो कर दिया, वह मान्य है, शिरोधार्य है। आज ही क्या, साठ वर्ष से स्वीकार करता आ रहा हूं, आज क्यों नहीं स्वीकार करूंगा? अनुशासित और विनीत धर्म परिवार मैं इस अवसर पर पूरे धर्मसंघ को आश्वस्त और विश्वस्त करना चाहता हूं कि मुझे किसी प्रकार की चिन्ता नहीं है। चिन्ता करना सीखा ही नहीं। इसलिए कि मुझे भगवान् महावीर का अनेकान्त दर्शन मिला है, मुझे आचार्य भिक्षु के अनुशासन का सूत्र मिला है, मुझे पूज्य कालूगणी की अनन्त करुणा मिली है, उनके साये में मैं जीया हूं और मुझे अपने भाग्यविधाता मेरे गुरुवर तुलसी का तो सब कुछ मिला है। फिर मुझे किस बात की चिन्ता? इतने बड़े दायित्व और इतने बड़े धर्म संघ के संचालन का मैं पूरी निष्ठा के साथ, जैसा कि गुरुदेव ने संकल्प करवाया है, निर्वाह करूंगा। चिन्ता इसलिए भी मुझे नहीं है कि ऐसा विनीत और अनुशासित धर्मसंघ हमें मिला है, जो इशारे को समझता है, आचार्य के इंगित को मान कर चलता है, कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मेरे सहयोगी के रूप में महाश्रमण मुदितकुमार को गुरुदेव ने पहले से ही
tional
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org