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________________ नई भूमिका : नए संकल्प ५ नियुक्त कर रखा है, जो मेरे अन्तरंग कार्य के सहयोगी हैं । महाश्रमणीजी, जो हमारी साध्वियों और समणियों का नेतृत्व करती हैं, मेरी पूरी सहयोगी हैं। जब इतने शक्तिशाली सहयोगी हों तो फिर मैं क्यों चिन्ता करूं? मेरे सभी साधु-साध्वियां आज्ञा और अनुशासन को पूर्णरूप से मानने वाले और आत्मनिष्ठ हैं, इन सबका सहयोग मुझे प्राप्त | श्रावक समाज अत्यन्त विनीत और अनुशासित है, ऐसा समाज जिसे मिल जाये, उसे क्या चिन्ता होगी ? कृतज्ञता के स्वर मैं इस अवसर पर अपनी स्वर्गीया माता साध्वी श्री बालूजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। उन्होंने मुझे अध्यात्म के संस्कार दिये । बचपन की बात याद है मुझे, जब वे रात्रि के पिछले प्रहर में गाती थीं - 'संत भीखणजी रो समरण कीजै ।' चौबीसी, आराधना के बोल उनके द्वारा मेरे भीतर जमते गए । साध्वी मालूजी, जिन्होंने मेरा पालन-पोषण किया, के प्रति भी मैं कृतज्ञता प्रकट करता हूं । मैं नहीं भूल सकता छबीलजी स्वामी को, जिन्होंने प्रथम बार बीज बोने का काम करते हुए मुझसे कहा -- 'तुम गंगाशहर जाओ, पूज्य कालूगणी के दर्शन करो। वहीं तुम्हें मुनि तुलसी भी मिलेंगे, उनके भी दर्शन करना ।' मैं कभी नहीं भूल सकता सेवाभावी मुनि चम्पालालजी स्वामी को, चतुर्विध धर्मसंघ जिन्हें भाईजी महाराज के नाम से जानता है । उनके साथ में बहुत वर्ष तक रहा और उन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया । और सबसे अधिक मंत्री मुनि मगनलालजी स्वामी के प्रति कृतज्ञता । उनके समान दूसरा कोई व्यक्ति मैंने अपने जीवन में नहीं देखा। इतना प्रबुद्ध, इतना चिंतक और इतना गंभीर व्यक्ति मैंने दूसरा नहीं देखा अभी तक । मेरे साथ वे जो कुछ बात करते, उससे मुझे ऐसा लगता, जैसे वे सचमुच कोई बीज बो रहे हैं। और भी अनेक साधु-साध्वियों का मुझे स्नेह और संरक्षण मिला है, सभी का मुझ पर उपकार है। सबके प्रति कृतज्ञभाव से मैं अभिवंदना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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