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आचार्य तुलसी की आलोक रेखाएं १४१ है, उसका हेतु अध्यात्म-पक्ष की दुर्बलता है। अणुव्रत-आन्दोलन का लक्ष्य है आध्यात्मिक चेतना को जागृत करना।' जीवन का क्रियात्मक पक्ष : संयम युग का प्रवाह विज्ञान की ओर है। बुद्धिवाद का स्थान सर्वोपरि है। फिर भी जटिलताएं बढ़ रही हैं। मनुष्य उलझ रहा है। सहज ही प्रश्न होता है-ऐसा क्यों? इसका समाधान गुरुदेव ने एक छोटे वाक्य में दिया है। वह यह है- 'आज का मनुष्य अज्ञ नहीं किन्तु मूढ़ है।' मोह से लिप्त ज्ञान-विज्ञान मनुष्य के लिए वरदान नहीं होता। इसीलिए गुरुदेव ने सुझाया कि प्रत्येक व्यक्ति संयमी बने। कुछ लोगों की मान्यता रही-संयम जीवन का निषेधात्मक पक्ष है, उससे जीवन का विकास नहीं होता। गुरुदेव ने अपना अनुभव इस भाषा में प्रस्तुत किया- 'मैं संयम को जीवन का सर्वोपरि क्रियात्मक-पक्ष मानता हूं। असंयम स्वीकारात्मक पक्ष है, इसलिए वह जीवन की महानता का ध्वंसात्मक रूप है। संयम अस्वीकारात्मक-पक्ष है, इसलिए वह जीवन की महानता का निर्माणात्मक रूप है। समाज और राज्य का आधार : नैतिक चेतना समाज, राज्य और धर्म-संप्रदाय-ये तीन महान् संस्थान हैं। इनकी सम्यक् स्थिति पर ही अरबों व्यक्तियों का भाग्य निर्भर है। उन्हें कर्त्तव्य-बोध देते हुए गुरुदेव ने कहा-'कुछ सामाजिक प्रथाएं आज बन्धन बन गई हैं। उनसे जकड़े हुए लोग नैतिकता को तिलांजलि दे रहे हैं। इस स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि सभी समाजों की समान स्थिति के लिए एक समान आचार-संहिता बने और वह समाज के लोगों द्वारा ही बने। उसका आधार नैतिक चेतना को उत्तेजना मिले, यह होना चाहिए।'
राजनीति की साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के प्रति दुःख प्रकट करते हुए गुरुदेव ने सुझाया-'राजनयिक एक सामान्य आचार-संहिता को मान्य करें और सभी राजनयिक दलों के प्रतिनिधियों का एक ऐसा संस्थान हो, जो आचार-संहिता की साधारण बातों के पालन और अपालन का सह-विमर्श कर सके और अपने-अपने दल को चेता सके।'
जो आचार-संहिताजनयिक दलों के प्रतिसामान्य आचा
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