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________________ १४२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ सांप्रदायिक सद्भाव के पांच सूत्र आचार्यश्री तुलसी एक धर्म-संप्रदाय के आचार्य हैं। फिर भी साम्प्रदायिकता पर उन्होंने सदा प्रहार किए हैं। धार्मिक लोगों की दुर्बलता को वे स्वयं स्वीकार करते हैं। वे बहुधा कहते हैं-धार्मिकों में अभेद की अपेक्षा भेद खोजने की वृत्ति अधिक है। धर्म की व्याख्या भिन्न होने पर भी हमें असहिष्णु नहीं होना चाहिए। दूसरे धर्म या सिद्धांत के प्रति असहिष्णु होने वाला सबसे पहले धर्म को नष्ट करता है। सम्प्रदाय-मैत्री के लिए समान आचार-संहिता होनी चाहिए। गुरुदेव ने अपने विश्वास को समन्वय के पांच सूत्रों में अभिव्यक्ति दी। वह पंचसूत्री कार्यक्रम समन्वय की दृष्टि से आज भी महत्त्वपूर्ण बना हुआ है • मण्डनात्मक नीति बरती जाए। अपनी मान्यता का प्रतिपादन किया जाए। दूसरों पर लिखित या मौखिक आक्षेप न किया जाए। • दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता रखी जाए। • दूसरे सम्प्रदाय और उसके अनुयायियों के प्रति घृणा तथा तिरस्कार की भावना का प्रचार न किया जाए। _ . कोई सम्प्रदाय-परिवर्तन करे तो उसके साथ सामाजिक बहिष्कार आदि अवांछनीय व्यवहार न किया जाए। • धर्म के मौलिक तत्त्व-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जीवन-व्यापी बनाने का सामूहिक प्रयत्न किया जाए। विद्या भी खतरा है गुरुदेव शिक्षा को बहुत आवश्यक मानते हैं पर अनुशासन और चरित्रविहीन शिक्षा को वे बहुत उपयोगी नहीं मानते। उन्होंने इस बात पर बल दिया- 'उच्च शिक्षा का अधिकारी वही माना जाए जो विनय, अनुशासन और संयम के प्रति निष्ठावान हो।' अनुशानहीनता की कटु अनुभूतियों के बाद अब शिक्षा अधिकारियों में भी यह चिन्तन होने लगा है। गुरुदेव ने विद्यार्थी को संबोधित करते हुए कहा-'चारित्रिक संतुलनविहीन विद्या भी खतरा है। विद्यार्थी को पहले चरित्रार्थी होना चाहिए, फिर विद्यार्थी । चरित्रार्थी विद्यार्थी न हो तो चल सकता है। इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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