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११८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ है, वहां तिरस्कार होना चाहिए। यदि सचमुच जैन समाज ने ऐसा दृष्टिकोण रखा, हमारे तोलने के बाट दो प्रकार के रहे तो मैं समझता हूं, पचीस सौवीं निर्वाण शताब्दी का अर्थ भी बहुत कम हो जाएगा। आज हम यह सोचें कि भगवान् महावीर ने जो सूत्र दिए थे, उन सूत्रों का हम पालन करें। __ भगवान् महावीर ने, जहां तक मैं समझ पाया हूं और पढ़ने को मिला है, कहीं भी नहीं कहा कि मेरा कोरा नाम जपो, कोरी पूजा करो, यह करो, वह करो। भगवान् के पास कोई भी आया। उससे उन्होंने यही कहा-व्रतों को स्वीकार करो। हिन्दुस्तान में एक महावीर ही ऐसे हुए हैं, जिन्होंने व्रतों पर इतना बल दिया है, संयम पर इतना बल दिया है और चरित्र पर इतना बल दिया है।
आज इस समय हमें आत्मालोचन करना चाहिए कि महावीर की जयंती मना रहे हैं और प्रतिवर्ष मनाते चले आ रहे हैं, अच्छा है। मैं मानता हूं कि शभ है, बरा नहीं है। किन्तु उसके साथ यह और जोड़ देना चाहिए कि महावीर की जयंती मनाते समय हम इस बात को न भूलें कि अकेले भगवान महावीर ने अपने जमाने में तीन लाख से अधिक बारह व्रती श्रावक पैदा किए थे। आज हमारे जितने जैन है, उनमें जैन अनुयायी तो हैं किन्तु श्रावक कितने हैं, इस पर हमें विचार कर लेना चाहिए। आज चारों समाजों में हमारे हजारों साधु-साध्वियां हैं। क्या आज तीन लाख जैनों को बारह व्रती श्रावक नहीं बनाया जा सकता? अगर आज तीन लाख श्रावक जैनों में बारह व्रती बन जाएं तो हिन्दुस्तान में शायद एक नई क्रान्ति का सूत्रपात हो सकता है। मैं आशा करता हूं कि हिन्दुस्तान में आध्यात्मिक क्रान्ति का सूत्रपात करने के लिए जैन समाज आगे आएगा।
* भगवान् महावीर की पच्चीस सौवीं निर्वाण शताब्दी पर प्रदत्त वक्तव्य ।
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