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महावीर को पूजें या समझें? ११७ धर्म के व्यक्तिगत रूप का प्रतिपादन किया, धर्म को आध्यात्मिक रूप में प्रतिपादित किया तो दूसरी ओर धर्म के सन्दर्भ में सामाजिक बुराइयों
और सामाजिक समस्याओं के प्रतिकार का सूत्र दिया। कितना अच्छा होता कि हम महावीर को भलीभांति समझते। ____ आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा-वीतराग! आपकी पूजा करने की अपेक्षा आपकी आज्ञा पालना बहुत श्रेष्ठ है। दो बातें हैं-एक पूजा करना और एक आज्ञा-पालन करना। हम ऐसी संतान हो गए कि पूजा तो खूब करते हैं किन्तु आज्ञा-पालन नहीं चाहते। हम पिता के चरणों में वंदन करना जानते हैं पर यदि पिता आज्ञा दे कि इधर आओ तो हम उधर जाएंगे। अरे! बाप कैसे प्रसन्न होगा! आप उनकी हजार बार पूजा करें
और उनकी एक बात को भी टाल दें तो वे प्रसन्न कैसे होंगे? यह स्थिति आज जैन समाज की नहीं, सारे धार्मिक समाज की हो रही है। हिन्दुस्तान के वैचारिक पतन और मानसिक गुलामी का यदि कोई बड़ा कारण है तो वह है कोरा पूजावाद, आचार-शून्य पूजावाद। इस भक्तिवाद ने, इस कोरे कर्मकाण्ड और कोरी उपासना ने, हिन्दुस्तान के चरित्र का जितना पतन किया, उतना किसी ने नहीं किया, उतना शायद नास्तिकों ने भी नहीं किया। इस सारी स्थिति के सन्दर्भ में महावीर को समझने का प्रयत्न करें। बहुत सुन्दर अवसर हमारे सामने आ रहा है। पचीस सौ वर्षों का लेखा-जोखा करने का हमें मौका मिल रहा है। हमारा एक दिशा में प्रयत्न होना चाहिए। ऐसा नहीं कि हमारी दृष्टि बदलती रहे, कभी कुछ और कभी कुछ सोचती रहे। अपने लिए कुछ और दूसरे के लिए कुछ सोचें। मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है-राजनीतिक दलों में आजकल दल-बदल की बात चल रही है। एक बड़े राजनीतिक कार्यकर्ता ने अपना दल बदल दिया। जिस पार्टी से वे निकले, उस पार्टी के हाईकमान ने प्रस्ताव किया कि उसने अनुशासन को भंग किया है, इसलिए उसे तिरस्कृत करना चाहिए, उसकी निन्दा करनी चाहिए, दण्डित करना चाहिए। थोड़े दिन बाद दूसरी पार्टी का सदस्य उनकी पार्टी में आया तो सब मिले और मिलकर बोले-'इसका हृदय परिवर्तन हुआ है इसलिए इसका अभिनन्दन होना चाहिए।' जहां आने का प्रश्न है, वहां हृदय-परिवर्तन के लिए अभिनन्दन होना चाहिए और जहां जाने का प्रश्न
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