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________________ १०४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ था, बच्चा था। सचमुच यही बात है। किन्तु एक ही बात ने मुझे उबारा कि मैंने कभी अपनी चिन्ता नहीं की और वह व्यक्ति धन्य है, बहुत भाग्यशाली है, जिसकी चिन्ता करने वाले गुरु मिल जाएं? सचमुच वह धन्य होता है। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे एक ऐसा निर्माता मिला, जो व्यक्ति की सुप्त शक्ति को जगाना जानता है। हर व्यक्ति में शक्ति होती है। शक्ति होना एक बात और शक्ति को जगाने वाला देवता मिलना दूसरी बात है। भाग्यशाली वह नहीं होता, जिसमें शक्तियां होती हैं। शक्तियां और भी लोगों में हो सकती हैं। मैं सचमुच अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे एक ऐसा देवता मिला, जिसने निरंतर मेरी शक्तियों को जगाने की चिन्ता की। केवल बचपन में ही नहीं, आज तक भी बराबर कर रहा है। जब मैं बच्चा था, तब आप (गुरुदेव) एक बात पर बहत जोर देते थे। आप कहते, अभी तुम जितने संयत रहोगे और जितना अपने में लीन रहोगे, अध्ययन में लीन रहोगे, उतना ही तुम स्वतंत्र बनोगे और अभी तुमने यदि यह नहीं किया तो जीवन भर परतन्त्रता बनी रहेगी। मैं बहुत कृतज्ञ हूं। आप सब लोगों ने जो शुभकामनाएं प्रकट की, उन शुभकामनाओं को, शुभाशंसाओं को स्वीकार करता हूं और जितनी प्रशंसाएं, जितने अभिनन्दन किए, जिनको जहां पहुंचना चाहिए, वहां समर्पित करता हूं। * महाप्रज्ञ अलंकरण के संदर्भ में आयोजित अभिनंदन समारोह में प्रदत्त वक्तव्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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