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१०० अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ कहा-क्या इलाज करूं? बाप ने कहा-बेटा दिन भर झूठी-झूठी बातें करता, है, बकवास करता है। यह दीखता है, वह दीखता है। बहुत झूठी बातें करता है। वैद्य ने कहा-दवा दूं। बाप ने कहा-और कोई दवा मत दीजिए, केवल इसकी आंखें फोड़ दीजिए। इसके अलावा इसकी कोई दवा नहीं है। प्रज्ञा का अन्तर्गमन जो व्यक्ति सत्य को देखता है, सत्य का साक्षात्कार करता है, उसे सचमुच यह पुरस्कार मिलता है कि आंखें फोड़ दी जाएं। इन सब स्थितियों को मैं सहन कर लेता हूं, सहन करना जानता हूं। कोई कठिनाई नहीं है।
गुरुदेव! मैं आपके सब अनुग्रहों को स्वीकार करता आया हूं, आज तक करता आया हूं और एक छोटे बच्चे की तरह स्वीकार करता आया हूं मेरी एक प्रार्थना आप भी स्वीकार करें कि जो व्यक्ति निर्विशेषण
और निरुपाधिक सत्ता की ओर आगे बढ़ना चाहता है, उसके लिए क्षमा करें और यह विशेषण की बात को आप स्वयं मुक्त कर दें। प्रज्ञा तो बढ़ाएं। मैं बहुत अच्छा मानता हूं कि मेरी प्रज्ञा और आगे बढ़े, उसमें निरंतर आपका आशीर्वाद और वरदान मुझे उपलब्ध होता रहे। किन्तु यह विशेषण वाली बात बहुत अटपटी है। मेरी प्रज्ञा को मेरे भीतर ही रहने दें। निकाल कर उसे बाहर न फेंकें।*
* महाप्रज्ञ अलंकरण के अवसर पर दिया गया वक्तव्य।
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