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________________ प्रज्ञा को भीतर ही रहने दें ६६ पैंतालीस वर्ष चले गए। मैंने गुरुदेव से फिर प्रार्थना की-मैं जब पचास वर्ष का होऊं तब मैं इस कार्य में पूर्णतः लग जाऊं। मेरा पचासवां वर्ष भी चला गया। एक मेरी दुर्बलता है कि मैं किसी से भी नहीं डरता, और किसी भी व्यक्ति की बात जंचे तो स्वीकार करता हूं। मेरे लिए जरूरी नहीं कि मैं स्वीकार करूं। किन्तु दुर्बलता एक है। बस एक सूत्र ऐसा है कि मन की प्रबल भावनाएं लेकर जाऊं कि मैं तो ऐसा करूंगा ही। किन्तु जब गुरुदेव कह देते हैं कि नहीं, तो वह बात समाप्त हो जाती है, पूर्ण विराम लग जाता है। कोई जन्मजात संस्कार है कि जिसकी व्याख्या शायद गुरुदेव भी नहीं कर सकते और मैं भी नहीं कर सकता। ___ पचास वर्ष भी बीत गए। मैंने फिर लिखित प्रार्थना की-पचपन वर्ष होने के पश्चात् संघीय कार्यों से मुक्त हो जाऊं। पचपन भी चला गया। पर एक बात मैं मानता हूं कि गत वर्ष मैंने गुरुदेव से प्रार्थना की-अभी लाडनूं रहना है। काफी लम्बा समय है। मुझे नौ महीने का समय दिया जाए, जिसमें मैं कुछ विशेष प्रयोग कर सकूँ। गुरुदेव से सोच-समझकर स्वीकृति दी। मैंने अपना प्रयोग शुरू किया और वह मेरे लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ। मेरी दिशाओं का उद्घाटन हुआ और मुझे आगे बढ़ने का मौका मिला। जहां मैं पहुंचना चाहता हूं, मुझे लगता है कि गुरुदेव का आशीर्वाद मेरे साथ है और मैं निश्चित ही पहुंच जाऊंगा। मेरा एकमात्र लक्ष्य है प्रत्यक्ष दर्शन, साक्षात्कार । परोक्ष के प्रति मेरा बहुत आकर्षण नहीं है और इसीलिए कभी-कभी लोग मुझे नास्तिक कह देते हैं, साम्यवादी कह देते हैं, उनका कोई दोष नहीं है। ___ मुझे एक छोटी-सी कहानी याद आ रही है। पिता, भ्राता, माता-सारा परिवार अंधा था। एक बेटा केवल देखने वाला था। अब जो देखने वाला था, वह कहता है-सूर्य कितना सुन्दर है, आकाश कितना सुहावना है, चांद कितना सुहावना है। बाप बोलता है कि लड़का पागल हो गया है। कितनी झूठी-झूठी बातें करता है। कहां है चांद, कहां है सूर्य, कहां है आकाश। सब उसे पागल कहने लगे। झगड़ा बढ़ गया। एक वैद्य आया। बाप ने कहा-सब कुछ ठीक है। हम सब स्वस्थ हैं। किन्तु एक बेटा ‘पागल हो गया है। उसका इलाज करें। वैद्य ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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