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________________ ८६ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ पास गया। उन्होंने सहजभाव में दो बोल कहे, वे मेरी अहंकार-मुक्ति की साधना में संबल बन गए। उन्होंने कहा-'विद्या का और गुरु-कृपा का अहंकार नहीं होना चाहिए। हम मुनि हैं। हम किस बात का अहंकार करें! मांगना बहुत छोटा काम है। हम रोटी के लिए दूसरों के सामने हाथ पसारते हैं, फिर अहंकार किस बात का? न जाने कितनी बार यह जीव बेर की गुठली बनकर पैरों में रौंदा जा चुका है। फिर अहंकार किस बात का? इन छोटे-छोटे बोलों ने मन की गहरी परतों को छू लिया। अहंकार मेरी मृदुता पर कभी आक्रमण नहीं कर सका। स्वतन्त्र प्रवास वि. सं. २००१ का चातुर्मासिक प्रवास मैंने सरदारशहर में किया। गुरुदेव के पास रहकर मैं जो अध्ययन कर सकता था, वह वहां नहीं हुआ। चातुर्मास के पश्चात् मैं फिर गुरुदेव के पास पहुंचा और फिर अध्ययन का क्रम चालू हो गया। एक मुनि ने कहा- 'आपने इनको अलग क्यों भेजा? गुरुदेव ने कहा-'इनका स्वभाव संकोचशील बहुत है। संकोच को कम करने के लिए मैंने इन्हें अलग भेजा। व्याख्यान देना बहुत जरूरी है। यहां मेरे पास व्याख्यान देने की कला भी नहीं सीखी जाती। इसलिए भी अलग भेजना जरूरी था।' मैं यह सारी बात एक तटस्थ श्रोता की भांति सुन रहा था। मैंने सोचा-मेरे आचार्य मेरे लिए जो भी प्रिय या अप्रिय करते हैं, वे किसी चिन्तन के साथ करते हैं, मेरे हितों को ध्यान में रखकर करते हैं। इसलिए गुरुदेव जो भी करें, उसमें तार्किक बुद्धि का प्रयोग अपेक्षित नहीं लगता। विश्वास का निदर्शन मैं दर्शनशास्त्र और तर्कशास्त्र का विद्यार्थी था, फिर भी गुरुदेव के आदेशों-निर्देशों को प्रायः बिना तर्क के स्वीकार करने में सफल रहा हूं। मुझे गुरुदेव पर विश्वास रहा है और वे भी मुझ पर विश्वास करते रहे हैं। कलकत्ता में जापान की बमबारी हुई। तेरापंथी महासभा के पुस्तकालय की हजारों-हजारों पुस्तकें गंगाशहर में लायी गईं। गुरुदेव का वहां चतुर्मास हुआ। मुझे संस्कृत और प्राकृत की बहुत पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। मैं मानता हूं, उस चातुर्मास में मेरे अध्ययन की नयी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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