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________________ अतुला तुला जो मनुष्य स्वावलम्बन में मस्त होता है, वह अपने आपको सदा स्मृति में रखता है, इसलिए वह जीवन में पग-पग पर सफल होता है । वार्ता ७० प्रकथयाम्येकां, धीमतः । टालस्टायस्य स्वावलम्बनसाफल्यं स्फुटं ज्ञातं भवेद् यतः || || मैं तुम्हें महाप्राज्ञ टालस्टाय की एक घटना सुनाता हूं। उसे सुनकर स्वालम्बन की सफलता स्पष्टतया ज्ञात हो जाएगी । स्वावलम्बाः कथं स्याम ? वयं स्मो धनिनां सुताः । कार्यं कुर्याम भवामो हस्तेन, लघवस्तदा ।। १०॥ कुछ विद्यार्थी खड़े हुए और बोले – अध्यापक-प्रवर ! हम धनिकों के पुत्र हैं, हम स्वावलम्बी कैसे बनें ? यदि हम अपने हाथ से काम करें तो छोटे हो जाएं - हमारे बड़प्पन की मर्यादा टूट जाए । Jain Education International धनस्य पुरुषार्थेन, विरोधो नास्ति कश्चन । पुरुषार्थेन, वर्धते धनमित्याह शिक्षकः ॥ ११ ॥ शिक्षक ने कहा - पुरुषार्थ के साथ धन का कोई विरोध नहीं है । वह पुरुषार्थ से ही बढ़ता है । पुण्यवन्तो जना अत्र, प्रकुर्वताम् । अत्र, सुखभोगं पुण्यहीना जना कार्यं कुर्वन्तु सन्ततम् ||१२|| विधेविधानमेतत्तु, न निवार्यं कथञ्चन 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003063
Book TitleAtula Tula
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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